अक्सर किसी दंपती के संतान नहीं होती तो इसके लिए सिर्फ महिला को जिम्मेदार ठहराया दिया जाता है। उसे तरह-तरह के ताने या उलाहने दिए जाते हैं। बांझ कहकर संबोधित करते हैं। लेकिन, इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता कि इसके लिए पुरुष भी बड़ा कारण हो सकते हैं। उसके अंदर भी कुछ शारीरिक खामियां हो सकती हैं जो पुरुष में बांझपन का कारण हो सकती हैं। इन कमजोरियों को दबाने या छिपाने की जरूरत नहीं, बल्कि किसी विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लेना जरूरी है। पुरुषों में ये समस्या एज़ोस्पर्मिया की हो सकती है। सरल भाषा में इसे निल या शून्य शुक्राणु की शारीरिक समस्या भी कहते हैं। एज़ोस्पर्मिया के कई कारण हो सकते हैं, जिनमे वेरिकोसील, इन्फेक्शन, कैंसर ट्रीटमेंट, जन्मजात नपुंसकता, हॉर्मोनल असंतुलन, किसी सर्जरी में ब्लॉकेज आदि शामिल हैं।
पुरुषों में एज़ोस्पर्मिया क्या है?
गर्भधारण की प्रक्रिया के लिए महिला की तुलना में पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या, आकार और गतिशीलता महत्वपूर्ण घटक हैं। ऐसे में महिला में सबकुछ सामान्य होने के बाद भी गर्भधारण नहीं होने पर पुरूष में विकार होने की संभावनाएं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पुरुष के शुक्राणु 15 मिलियन प्रति मिलीलीटर या इससे अधिक हैं तो सामान्य अवस्था है। इससे कम होने पर प्राकृतिक रूप से गर्भधारण होने में समस्या आती है।
विशेषज्ञ चिकित्सक के अनुसार सेक्स के दौरान निकले स्पर्म की गतिशीलता प्रति सेकेण्ड कम से कम 25 माइक्रोमीटर होनी चाहिए। यदि शुक्राणु इस गति से नहीं चलता है तो इसे अजूस्पर्मिया बीमारी कहेंगे। शुक्राणु की गति कमजोर होने से वह मादा के अण्डे में प्रवेश नहीं कर पाएगा और भ्रूण बनने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाएगी।
प्रमुख कारण
– शुक्राणु बनने में परेशानी
– शुक्राणु उत्पादन की समस्या
– क्रोमेजोमल या आनुवांशिक कारण
– वीर्य स्खलन में समस्या
– संक्रमण
– टेस्टिस (अण्डकोष) में विकार
– वास डिफरेंस की अनुपस्थिति
– वास/एपिडिडायमिस की रूकावट
हार्मोनल समस्याएं भी हैं बड़ी वजह
एलएच और एफएसएच पिट्यूटरी ग्रंथि से बनने वाले महत्वपूर्ण संदेश वाहक हार्मोन हैं, जो टेस्टिस पर कार्य करते हैं। ग्रंथि में किसी तरह की समस्या होने पर सही निर्देश नहीं मिल पाएंगे और शुक्राणु विकसित नहीं होंगे।
आधुनिक जीवनशैली के दुष्प्रभाव
काम का दबाव, घंटों तक बैठे रहना, तनाव, पौष्टिक आहार की कमी, नशा, धूम्रपान आदि भी पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या को कम करने के महत्वपूर्ण कारक हैं। भागदौड़ भरी जीवन शैली के कारण कम उम्र के पुरूषां में भी शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता में कमी सामने आ जाती हैं।
कम या खराब शुक्राणुओं की स्थिति में ये करें
पुरुषों में 10 से 15 मिलियन शुक्राणुओं की स्थिति में कृत्रिम गर्भाधान की आईयूआई तकनीक लाभकारी साबित हो सकती है। इसमें स्वस्थ शुक्राणुओं को महिला के प्राइवेट पार्ट में इंजेक्ट किया जाता है, जिससे गर्भधारण हो जाता है। जिन पुरुषों में 5 से 10 मिलियन शुक्राणु होते हैं, उनके लिए आईयूआई तकनीक प्रभावी नहीं है। वे आईवीएफ तकनीक की सहायता ले सकते हैं। यह तकनीक सरल, सुरक्षित और अधिक सफलता दर वाली है।
ये होता है आईवीएफ में
आईवीएफ में महिलाओं के गुणवत्तापूर्ण अण्डों को निकाल कर लेब में संतुलित अनुकूल वातावरण में रखा जाता है। बाद में जीवनसाथी के स्वस्थ शुक्राणुओं को अण्डों के साथ छोड़ दिया जाता है। शुक्राणु अण्डों में प्रवेश कर जाते हैं जिससे भ्रूण बन जाते हैं। दो–तीन दिन तक भ्रूण लेब में विकसित होता है। इसके बाद भ्रूण को गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।