अक्सर देखा जाता है कि गर्भावस्था के दौरान महिलाएं काफी सतर्क रहती हैं, सावधानियां रखती हैं. बावजूद इसके कई ऐसी जटिल समस्याएं लगातार सामने आती रहती हैं जो गर्भ में मौजूद शिशु और माता दोनों के लिए घातक है. कई बार लापरवाही भी गर्भावस्था की जटिलताओं को बढा देती है. जिससे गर्भावस्था का दौर हाई रिस्क प्रेगनेंसी में पहुंच जाता है. मानसिक और भावनात्मक रूप से इस दौरान महिलाएं काफी बुरे दौर से भी गुजरने लगती हैं. ऐसे में जरूरत है कि माता और शिशु दोनों को ठीक रखने के लिए अधिक सावधानी बरती जाए. आइए जानते हैं गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को सामान्यत किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
1: जेस्टेशनल डायबिटीज
यह एक ऐसी समस्या है जिसपर समय रहते काबू नहीं पाया गया तो प्री मेच्योर बर्थ जैसी स्थितियां इजाद होने की संभावना बढ़ जाती है. गर्भवती होने के बाद शुगर समस्या या डायबिटीज हो तो इस स्थिति को जेस्टेशनल डायबिटीज की श्रेणी में रखा जाता है. गर्भावस्था में हो रहे हार्मोनल बदलावों के कारण ऐसा हो सकता है कि शरीर में पर्याप्त इन्सुली न बने या शरीर में उसका उपयुक्त तरह से प्रयोग न हो पाए. इससे रक्त में ग्लूकोज का जमाव बढ़ सकता है. रक्त में ब्लड शुगर लेवल बढ़ने से जेस्टेशनल डायबिटीज की स्थिति पैदा हो सकती है. ऐसे में सुरक्षित डिलेवरी के लिए समय रहते चिकित्सक की सलाह लें.
2: उच्च रक्तचाप
यदि गंर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप की समस्या पहले से ही हो या गर्भावस्था के बाद हो गई हो तो इससे गर्भनाल में रक्त का प्रवाह कम होने की संभावना बढ़ जाती है. गर्भनाल शिशु को गर्भ में पोषण और ऑक्सीजन पहुंचाती है और यदि गर्भनाल तक रक्त का कम प्रवाह होगा तो इससे शिशु का विकास भी धीमा होने लगेगा. इसके अलावा इस स्थिति में प्री मेच्योर डिलीवरी या मां में प्रीएक्लेम्पसिया की स्थिति पैदा हो सकती है, जो शिशु और माता दोनों के लिए ही घातक है. ऐसे में समय समय पर गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप की जांच कराते रहें. जेस्टेशनल हाई ब्लड प्रेशर अक्सर दूसरी या तीसरी तिमाही के दौरान होता है और प्रसव के बाद यह स्वयं ही ठीक भी हो जाता है. ऐसे में चिकित्सक की निगरानी में इसका इलाज लेते रहें और आवश्यक सावधानियां रखें.
3: संक्रमण
यह सामान्य तौर पर महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान पाया जाने वाला एक सामान्य लक्ष्ण है लेकिन इस पर समय रहते ध्यान नहीं दिया जाता तो यह शिशु के लिए बेदह घातक साबित हो सकता है. यदि गर्भावस्था के दौरान मां को किसी भी तरह का बैक्टीरियल इन्फेक्शन, वायरल इन्फेक्शन, फंगल इन्फेक्शन या एसीडीटी की समस्या हो तो इससे माता और शिशु दोनों के स्वास्थ्य पर विपरित प्रभाव पड़ सकता है. ये सभी भ्रूण में जा सकते हैं और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इनमें से कई संक्रमणों का इलाज गर्भावस्था के दौरान या उससे पहले किया जा सकता है. यदि संक्रमण लम्बे समय तक बना रहता है तो इससे गर्भपात, एक्टोपिक प्रेगनेंसी, समय से पहले डिलीवरी, जन्मजात विकार समस्याएं हो सकती हैं. ऐसे में समय रहते इन संक्रमणों के बारे में चिकित्सकों से आवश्यक परामर्श और उपचार लें.
4: गर्भपात
गर्भपात कई कारणों से हो सकता है. इसमें संक्रमण, इम्यून सिस्टम की प्रतिक्रिया, यूटेरिन असामान्यता जैसे कई कारण शामिल है. शराब सेवन, धूम्रपान से भी गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है. व्यायाम ना करना, शरीए को एक्टिव ना रखना, अत्यधिक तनाव, अत्यधिक कैफीन का सेवन भी गर्भपात का कारण बन सकता है. गर्भपात के लक्षणों की बात करें तो इसमें योनि से खून आना, पेट में ऐंठन, वजाइनल डिस्चार्ज आदि शामिल हैं. एक बार शुरू होने के बाद गर्भपात को वापस ठीक नहीं किया जा सकता है, ऐसे में इसको लेकर सावधान रहना जरूरी है.
5: एक्टोपिक प्रेगनेंसी
एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का सबसे सामान्य प्रकार ट्यूबल प्रेग्नेंसी है जिसमें फर्टिलाइज एग गर्भाशय तक पहुंचने के रास्ते में ही फंस जाता है। ऐसा अक्सर फैलोपियन ट्यूब के सूजन या किसी अन्य समस्या के कारण क्षतिग्रस्त होने की वजह से होता है। फर्टिलाइज एग के असामान्य विकास सा हार्मोनल असंतुलन के कारण भी ऐसा हो सकता है। आमतौर पर एम्ब्रयो गर्भ में फर्टिलाइज होता है लेकिन अगर यह निषेचन फेलोपियन ट्यूब्स में होता है तो इस स्थिति को एक्टोपिक प्रेगनेंसी या ट्यूबल प्रेगनेंसी कहा जाता है. ऐसे में एक्टोपिक प्रेगनेंसी के लक्षणों को पहचानना जरूरी हो जाता है. इस लक्षणों में पेट दर्द, श्रोणि में दर्द, रक्तस्त्राव, जी मिचलाना और मल त्यागने की इच्छा होना शामिल हो सकते है. कुछ मामलों में यदि समय पर जांच नहीं की जाती है तो एक्टोपिक प्रेगनेंसी से फेलोपियन ट्यूब्स फट सकती हैं जो कि प्राण घातक हो सकता है.
6: समय से पहले प्रसव
यदि डिलेवरी के निर्धारित समय से पहले ही प्रसव हो जाए तो इसे प्री मेच्योर डिलेवरी कहा जाता है. यदि गर्भावस्था का दर्द 37वें हफ्ते में शुरू हो तो यह प्री मेच्योर लेबर कहा जाता है. जो शिशु प्री मेच्योर लेबर में पैदा होते हैं उन्हें आमतौर पर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं और इसके अलावा जन्म के बाद धीमा विकास हो सकता है. गर्भावस्था के आखिरी हफ्तों में मस्तिष्क और फेफड़े का विकास पूरा होने पर यह स्थिति पैदा होती है. जो आगे तक शिशु के जीवन के लिए नुकसानदेह होता है. यह आमतोर पर महिला की अनियमित जीवनशैली, पोषण की कमी, धूम्रपान और शराब के सेवन, संक्रमण के कारण हो सकता है. प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के कम स्तर से भी प्री मेच्योर लेबर हो सकता है.
7: स्टिल बर्थ
गर्भावस्था की पहली तिमाही में मिसकैरेज का खतरा ज्यादा होता है. पर कई बार ऐसा भी देखने को मिलता है कि पहले तीन महीने से लेकर गर्भावस्था के आखिरी तीन महीने तक अच्छे गुजर जाते हैं लेकिन डिलीवरी के समय बच्चा मरा हुआ पैदा होता है. इस स्थिति को स्टिल बर्थ कहा जाता है. गर्भावस्था के 20वें हफ्ते के बीच शिशु का मर जाना स्टिल बर्थ होता है. 20वें हफ्ते से पहले गर्भ गिरने को आमतौर पर मिसकैरेज कहते हैं. गर्भावस्था की अवधि के आधार पर स्टिल बर्थ को तीन तरह से विभाजित किया गया है. यदि 20 से 27वें हफ्ते में गर्भ गिरता है तो इसे शीघ्र या जल्दी स्टिलबर्थ, 28 से 36वें हफ्ते में गिरता है तो लेट स्टिलबर्थ और 37वें हफ्ते के बाद गिरता है तो इसे टर्म स्टिलबर्थ कहा जाता है. ऐसे में ऐसी स्थिति से बचने के लिए चिकित्सक परामर्श को गंभीरता से लें और बताए गए इलाज का कोर्स ध्यान से पूरा करें.
डाॅ. लीना सैनी, महिला रोग विशेषज्ञ