जानें क्या है बिना दवाओं के उपचार में कारगर प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति? क्या है इलाज का सिद्धांत?

प्राकृतिक चिकित्सा का अर्थ है प्रकृति द्वारा प्रदत चीजों से उपचार। प्राकृतिक चिकित्सा एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है जिसमें प्रकृति में उपलब्ध तत्वों से चिकित्सा की जाती है। समस्त संसार की संरचना पंचतत्वों (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी) से ही हुई है और हमारा शरीर भी इन्हीं पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन तत्वों के द्वारा की जाने वाली चिकित्सा ही प्राकृतिक चिकित्सा कहलाती है। पंच तत्वों के असंतुलन के कारण ही शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं। यदि शरीर में इन पांच मूल तत्वों का संतुलन बना रहे तो चयापचय की क्रियाएं सही तरह से होती हैं और शरीर स्वस्थ रहता है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में सात्विक भोजन, ताजे फलों का रस, कच्ची-हल्की पकी सब्जियों का सेवन और योग-ध्यान व संतुलित आहार विहार से विभिन्न रोगों का उपचार किया जाता है। यही कारण है कि लोग बिना दवाओं के उपचार की इस पद्धति को काफी महत्व दे रहे हैं।

प्राकृतिक चिकित्सा से रोग दूर किए जाते है, परंतु प्राकृतिक जीवन व्यतीत करने से रोग होते ही नहीं है। जहां अन्य चिकित्सा पद्धतियां शरीर को ही मुख्य उद्देश्य मान के इलाज करती है वहीं प्राकृतिक चिकित्सा शरीर के साथ साथ मन और आत्मा को भी ध्यान में रखते हुए शरीर, मन और आत्मा तीनों की चिकित्सा एक साथ करती है।

प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धांत:
• सभी रोग एक, उनके कारण एक और उनकी चिकित्सा भी एक ही है
• तीव्र रोग शत्रु नहीं, मित्र होते है
• प्रकृति स्वयं चिकित्सक है
• चिकित्सा रोग की नहीं बल्कि रोगी के पूरे शरीर की होती है
• जीर्ण रोग के रोगियों के आरोग्य लाभ में समय लग सकता है
• प्राकृतिक चिकित्सा से दबे रोग उभड़ते है
• प्राकृतिक उपचार मे उत्तेजक औषधियों के दिये जाने का प्रश्न ही नहीं

प्राकृतिक चिकित्सा उतनी ही पुरानी है जितनी हमारी ये प्रकृति। इस चिकित्सा प्रणाली में शरीर को प्रकृति मान कर उसका इलाज किया जाता है। वास्तव में यह चिकित्सा नहीं बल्कि “जीवन जीने की एक कला है”। पिछले कई वर्षों से यूरोप और अमेरिका समेत कई विचारशील देशों का ध्यान प्राकृतिक तत्वों की उपयोगिता की ओर बहुत तेजी से आकर्षित हुआ है और उन्होंने सूर्य की किरणों, मिट्टी, जल, वायु का प्रयोग कर शारीरिक परेशानियों को दूर करने के लिए उपयोग मे लेना शुरू कर दिया है जिसे इस समय ‘नेचर क्योर’ के नाम से भी जाना जाता है। नेचुरोपैथी या योग प्राकृतिक चिकित्सा निर्धन व्यक्तियों व गरीब देशों के लिए एक वरदान से कम नहीं है। प्राकृतिक चिकित्सक से सलाह लेकर हम स्वयं ही घर बैठे बिना किसी खर्चे के आसानी से अपना उपचार कर सकते है।

उपचार का तरीका:
प्राकृतिक चिकित्सा में सभी रोगों का मूल कारण शरीर में विजातीय द्रव्य (टॉक्सीन्स) का होना मानकर उपचार किया जाता है। ये विषैले द्रव्य एक सीमा से अधिक हो जाते हैं तो वे रोग के रूप मे उभर कर सामने आते हैं। प्रकृति प्रतिदिन मल, मूत्र, पसीने और सांस के माध्यम से हमारे शरीर से इन्हें बाहर निकाल कर हमें स्वस्थ रखने का कार्य करती है। पर जब ये दूषित द्रव्य साधारणतः बाहर नहीं निकाल पाते तो शरीर में विषैले विजातीय द्रव्य के रूप में इकट्ठा होने लगते हैं और रोग पैदा करते हैं।

प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली में किसी भी प्रकार की बाहरी दवाइयों का सेवन पूर्णतः वर्जित है क्योंकि दवाइयों का कार्य रोग को दबाना होता है जबकि प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली में रोग को शरीर से बाहर निकालने पर जोर दिया जाता है और जब ये हानिकारक द्रव्य शरीर से बाहर निकाल जाते है तो शरीर स्वतः ही स्वस्थ होता चला जाता है। बीमारियों से लड़ने में प्रकृति के साथ साथ हमारी जीवनी शक्ति(वाइटल फोर्स) भी समान रूप में कार्य करती है। एक कुशल प्राकृतिक चिकित्सक रोग का उपचार रोगी के चिकित्सा इतिहास, भाषा, जीवन शैली और भावनात्मक स्थति के साथ साथ शारीरिक परीक्षण से शुरू करता है। एक प्राकृतिक चिकित्सक रोगी की काउंसलिंग के बाद यदि पहले से कोई दवा का उपयोग चल रहा है तो उसको धीरे धीरे कम करके खुराक बंद करने में मदद करता है और फिर प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा उसका आहार, जीवनशैली परामर्श और योग प्राकृतिक चिकित्सा उपचार को एक्यूपंक्चर, फिजियोथेरेपी के साथ जोड़कर रोगी को रोग के कारणों के बारे में जागरूक कर उसकी बीमारी का उपचार शुरू करता है। प्राकृतिक चिकित्सा, केवल एक चिकित्सा प्रणाली न होते हुए जीवन जीने की एक शैली है जिसमें प्राकृतिक आहार विहार और प्राकृतिक सोच विचार का वर्णन आता है, इसलिए कहा जाता है “प्रकृति स्वयं चिकित्सक है”।

 

प्राकृतिक चिकित्सा के प्रकार:

• आकाश तत्व चिकित्सा – उपवास चिकित्सा (रसोपवास, मठोपवास, फलोपवास, दुग्धोपवास, पूर्णोपवास)।
• वायु तत्व चिकित्सा – पवन स्नान, प्राणायाम ।
• अग्नि तत्व चिकित्सा – धूप स्नान, भाप स्नान।
• जल तत्व चिकित्सा – कटि स्नान, पीठ या रीढ़ स्नान, गीली पट्टी लपेट, मेहन स्नान, नेत्र स्नान।
• पृथ्वी तत्व चिकित्सा – मिट्टी चिकित्सा, मिट्टी पट्टी, पंक स्नान।
• मालिश चिकित्सा
• आहार चिकित्सा
• सूर्य किरण चिकित्सा
• राम नाम चिकित्सा

 

आहार नियंत्रण जरूरी:
मनुष्य को छोड़ कर सभी पशु-पक्षी, समस्त जीव समय पर उठते और सोते हैं, सात्विक आहार लेते हैं। अपना हर कार्य समय पर करते है। सिर्फ मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो कभी भी कुछ भी कर लेता है और फिर उसके परिणाम से दुख भोगता है। विद्वानों द्वारा कहा भी जाता है जैसा खाए अन्न वैसा होवे मन। अर्थात हम जो भी खाते है, पीते है उसका प्रभाव हमारे आचरण पर पड़ता है। हमने भोजन को भोग का विषय समझ रखा है, हम भोग के वशीभूत होकर स्वाद के लिए भोजन करने लग गए है। अन्न से मन का निर्माण होता है इसलिए आहार पर नियंत्रण जरूरी है।

: सिद्धार्थ जैन, नेचुरोपैथ

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