ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया के कारण फैलने वाली टीबी या क्षय रोग एक संक्रामक बीमारी है। मुख्य रूप से यह बैक्टीरिया 85 फीसदी फेफड़ों पर प्रभाव डालता है। इसके आलावा 15 फीसदी ब्रेन, लिवर, किडनी, गले, यूटरस, मुंह, हड्डी आदि में भी टीबी का संक्रमण हो सकता है। भारत में अधिकांश लोगों में फेफड़ों का टीबी पाया जाता है। टीबी के मरीज के खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वालीं बारीक बूंदें इन्हें एक से दूसरे व्यक्ति में फैलाती हैं। फेफड़ों के अलावा दूसरी कोई टीबी एक से दूसरे में नहीं फैलती। वैसे तो टीबी का इलाज संभव है लेकिन यह घातक इसलिए है क्योंकि यदि सही समय पर इसका इलाज ना हो तो यह शरीर के जिस हिस्से में होती है, उस हिस्से को बेकार कर देती है। ऐसे में लक्षण नजर आते ही टीबी की जांच आवश्यक होती है।
टीबी के लक्षण
1. तीन सप्ताह से ज्यादा खांसी
2. बुखार विशेष तौर से शाम को बढने वाला बुखार
3. छाती में दर्द
4. वजन का घटना
5. भूख में कमी
6. बलगम के साथ खून आना
टीबी की जांच कहां
अगर तीन सप्ताह से ज्यादा खांसी हो तो नजदीक के सरकारी अस्पताल/ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, जहां बलगम की जांच होती है, वहां बलगम के तीन नमूनों की निःशुल्क जांच करायें। टीबी की जांच और इलाज सभी सरकारी अस्पतालों में बिल्कुल मुफ्त किया जाता है।
टीबी का उपचार कहां
रोगी को घर के नजदीक के स्वास्थ्य केन्द्र (उपस्वास्थ्य केन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र एवं चिकित्सालयों) में डॉट्स पद्वति के अन्तर्गत किया जाता है।
टीबी से बचाव के साधन
1. बच्चों को जन्म से एक माह के अन्दर B.C.G. का टीका लगवायें।
2. रोगी खंसते व छींकतें वक्त मुंह पर रूमाल रखें।
3. रोगी जगह-जगह नहीं थूंके।
4. क्षय रोग का पूर्ण इलाज ही सबसे बड़ा बचाव का साधन है।
उपचार विधि
प्रथम दो से तीन माह स्वास्थ्य पर स्वास्थ्य कर्मी की सीधी देख-रेख में सप्ताह में तीन बार औषधियों का सेवन कराया जाता है। बाकी के चार-पांच माह में रोगी को एक सप्ताह के लिये औषधियां दी जाती है जिसमें से प्रथम खुराक चिकित्साकर्मी के सम्मुख तथा शेष खुराक घर पर निर्देशानुसार सेवन करने के लिये दी जाती है। नियमित और पूर्ण अवधि तक उपचार लेने पर टीबी से मुक्ति मिल सकती है।
टीबी के निदान (पहचान) का सबसे कारगर एवं विश्वसनीय तरीका सुक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) के द्वारा बलगम की जांच करना है क्योंकि इस रोग के जीवाणु (बेक्ट्रेरिया) सुक्ष्मदर्शी द्वारा आसानी से देखे जा सकते हैं। टीबी रोग के निदान के लिये एक्स-रे करवाना, बलगम की जांच की अपेक्षा मंहगा तथा कम भरोसेमन्द है, फिर भी कुछ रोगियों के लिये एक्स-रे व अन्य जांच जैसे FNAC, Biopsy, CT Scan की आवश्यकता हो सकती है। उपचार की अवधि 6 से 8 माह है।
क्या क्षय रोगियों के लिये डोट्स कारगर?
डॉट्स पद्वति के अन्तर्गत सभी प्रकार के क्षय रोगियों को तीन समूह में विभाजित कर (नये धनात्मक गम्भीर रोगी पुरानी व पुनः उपचारित क्षय रोगी और नये कम गम्भीर रोगी) उपचारित किया जाता है। सभी प्रकार के क्षय रोगियों का पक्का इलाज डाट्स पद्वति से सम्भव है। सबसे जरूरी है कि इलाज पूरी तरह टीबी ठीक हो जाने तक चले। बीच में छोड़ देने से बैक्टीरिया में दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और इलाज काफी मुश्किल हो जाता है क्योंकि आम दवाएं असर नहीं करतीं।
इस स्थिति को MDR/XDR यानी मल्टी ड्रग्स रेजिस्टेंट/एक्सटेंसिवली ड्रग्स रेजिस्टेंट कहते हैं। आमतौर पर हर 100 में 2 मामले MDR के होते हैं। MDR के मामलों में से 7 फीसदी XDR के होते हैं, जोकि और भी नुकसानदे है। प्राइवेट अस्पतालों में भी इसका इलाज ज्यादा महंगा नहीं है। आमतौर पर दवाओं पर महीने में 300-400 रुपये खर्च होते हैं। लेकिन अगर XDR/MDR वाली स्थिति हो तो इलाज महंगा हो जाता है।
कमजोर इम्युनिटी वाले रहें सावधान
उन लोगों को टीबी खतरा सबसे ज्यादा होता है जिनकी इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) कम होती है। अच्छा और स्वास्थ्यवर्धक खान-पान न करने वालों को टीबी ज्यादा होती है क्योंकि कमजोर इम्यूनिटी से उनका शरीर बैक्टीरिया का वार नहीं झेल पाता। कई बार जब कम जगह में ज्यादा लोग रहते हैं तब इन्फेक्शन तेजी से फैलता है। अंधेरी और सीलन भरी जगहों पर भी टीबी ज्यादा होती है क्योंकि टीबी का बैक्टीरिया अंधेरे में पनपता है। स्मोकिंग करने वाले को टीबी का खतरा ज्यादा होता है। डायबीटीज के मरीजों, स्टेरॉयड्स लेने वालों और एचआईवी मरीजों को भी खतरा ज्यादा रहता है।