मलेरिया मादा एनोलीज जाति के मच्छरों के काटने से फैलता है। इस मादा मच्छर में एक खास प्रकार का जीवाणु पाया जाता है जिसे डॉक्टरी भाषा में प्लाज्मोडियम नाम से जाना जाता है। जब यह मच्छर आपको काटता है, तो यह आापके खून में जा कर रेड ब्लड सेल्स को नष्ट करता है। यह एक प्रकार का बुखार है जो ठण्ड या सर्दी (कंपकपी) लग कर आता है। मलेरिया रोगी को रोजाना या एक दिन छोड़कर तेज बुखार आता है। इसमें बुखार कभी कम हो जाता है तो कभी दुबारा आ जाता है। गंभीर मामलों में रोगी के कोमा में जाने और या उसकी मृत्यु होने की भी आशंका रहती है।
मलेरिया की गंभीरता का अंदाजा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक आंकड़े से लगाया जा सकता है। जिसके मुताबिक दक्षिण पूर्व एशिया के कुल मलेरिया के मामलों में 77% मामले अकेले भारत में हैं। जो मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, कर्नाटक, गोवा, मध्य प्रदेश, पूर्वोत्तर राज्यों में प्रचलित है।
लक्षण
सर्दी और बुखार
पसीना आकर बुखार कम होना
कमजोरी महसूस करना
सिरदर्द और शरीर में दर्द
उल्टी आना
मुंह का स्वाद जाना
मलेरिया के प्रकार?
1. प्लासमोडियम फैल्सीपैरम – इसे दिमागी बुखार भी कहते हैं. 1996 में इसी मेलरिया से सबसे ज्यादा मौतें हुई थीं. यह काफी खतरनाक होता है। इसमें पीड़ित व्यक्ति एकदम बेसुध हो जाता है। उसे पता ही नहीं होता कि वो बेहोशी में क्या बोल रहा है। रोगी को बहुत ठंड लगने के साथ उसके सिर में भी दर्द बना रहता है। लगातार उल्टियां होने से इस बुखार में व्यक्ति की जान भी जा सकती है।
2. प्लासमोडियम विवैक्स- देश के लगभग 6०% मलेरिया केसेस प्लासमोडियम विवैक्स के होते हैं। ज्यादातर लोग इस तरह के मलेरिया बुखार से पीड़ित होते हैं। विवैक्स परजीवी अधिकांश दिन के समय काटता है। यह मच्छर बिनाइन टर्शियन मलेरिया पैदा करता है जो 48 घंटों के बाद अपना असर दिखाना शुरू करता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को कमर दर्द, सिर दर्द, हाथों में दर्द, पैरों में दर्द, भूख ना लगने के साथ तेज बुखार भी बना रहता है।
3. प्लासमोडियम ओवाले – यह सबसे दुर्लभ प्रकार है जो मुख्य रूप से ट्रॉपिकल वेस्ट अफ्रीका में पाया जाता है। प्लास्मोडियम ओवेल एक परजीवी प्रोटोजोआ की प्रजाती है। इसके कारण मनुष्य में टरसियन मलेरिया होता है। इसका प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम तथा प्लास्मोडियम विवैक्स से नजदीकी सबंध है जिनके कारण अधिकांश लोंगो को मलेरिया होता है। यह इन दो प्रजातियों के मुकाबले विरल है तथा प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम से कम खतरनाक है।
4. प्लासमोडियम मलेरी – प्लास्मोडियम मलेरी एक प्रकार का प्रोटोजोआ है, जो बेनाइन मलेरिया के लिए जिम्मेदार होता है। हालांकि यह मलेरिया उतना खतरनाक नहीं होता जितना प्लास्मोडियम फैल्सीपैरम या प्लास्मोडियम विवैक्स होते हैं। इस रोग में क्वार्टन मलेरिया उत्पन्न होता है, जिसमें मरीज को चौथे दिन बुखार आ जाता है। इसके अलावा रोगी के यूरिन से प्रोटीन निकलने लगते हैं। जिसकी वजह से शरीर में प्रोटीन की कमी होकर उसके शरीर में सूजन आ जाती है। अमरीका, अफ्रीका और साउथ ईस्ट एशिया के ट्रॉपिकल जगहों पर यह ज्यादा देखने को मिलता है। इस मलेरिया प्रकार के लक्षण ठंड और तेज बुखार है।
5. प्लास्मोडियम नोलेसी- इस मलेरिया से पीड़ित रोगी को ठंड लगने के साथ बुखार बना रहता है। बात अगर इसके लक्षण की करें तो रोगी को सिर दर्द, भूख ना लगना जैसी परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं। यह दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाने वाला एक प्राइमेट मलेरिया परजीवी है।
उपचार
कोई भी बुखार मलेरिया हो सकता है। ऐसे में तुरंत रक्त की जांच करवाना, सभांवित उपचार लेना और मलेरिया पाये जाने पर पूरा उपचार लेना आवश्यक है। बुखार होने पर क्लारोक्विन की गोलियां देने से पहले जांच के लिए खून लेना आवश्यक है। रक्त की जांच से ही यह पता चलता है कि बुखार मलेरिया है या नहीं। जांच के लिये कीटाणु रहित सुई को मरीज की अनामिका अंगुली में थोड़ा प्रवेश कराकर खून की एक दो बूंदों की कांच की पट्टिका से स्लाइड बनाई जाती है और मेलरिया की जांच की जाती है। स्लाइड टेस्ट के अलावा मलेरिया एंटीजन डिटेक्शन टेस्ट भी किया जाता है। इसके अलावा प्रत्येक बुखार के रोगी को जांच के लिए खून लेने के बाद मलेरिया का सम्भावित रोगी मानकर तुरंत उपचार देना चाहिए।
मलेरिया से बचाव व रोकथाम
– घरों के अन्दर डी.डी.टी. जैसे कीटनाशकों का छिड़काव करें, जिससे मच्छरों का नष्ट किया जा सके।
– घरों में व आसपास गड्डों, नालियों, बेकार पड़े खाली डिब्बों, पानी की टंकियों, गमलों, टायर ट्यूब में पानी इकट़्ठा ना होने दें।
– यह मच्छर साफ पानी मे जल्दी पनपता है। इसलिए सप्ताह में एक बार पानी से भरी टंकियों मटके, कूलर आदि खाली करके सुखा दें।
– टांके आदि पेयजल स्त्रोतों में स्वास्थ्य कार्यकर्ता या स्वास्थ्य विशेषज्ञों की देखरेख में टेमोफोस नामक दवाई समय समय पर डलवाते रहें।
– पानी के स्थायी स्त्रोतों में मछलियां छुड़वाने हेतु स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की मदद ली जा सकती है।
– जो पानी पीने के लिए ना हो या गंदा पानी एकत्रित होने से रोका नहीं जा सके वहां पानी पर मिट्टी का तेल या जला हुआ तेल (मोबिल ऑयल) छिडकें।
– खुद को मच्छरों से बचाने के लिए खिड़कियों, दरवाजों में जालियां लगवाएं। मच्छरदानी इस्तेमाल करें या मच्छर निवारक क्रीम, सरसों का तेल आदि इस्तेमाल करें।
– लिक्विड डाइट ज्यादा से ज्यादा लें। विटमिन सी से युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन करना इस बीमारी में बेहद फायदेमंद है जैसे नींबू, संतरा, अंगूर आदि।
– मलेरिया का शिकार होने पर खाना खाना ना छोड़ें, हेवी डाइट लेने से बचें।