पुरुषों के शुक्राणुओं की गर्भधारण में क्या भूमिका? कैसे काम करते हैं? जानें 7 फैक्ट्स

जिस तरह से गर्भधारण में महिलाओं के डिंबोत्सर्जन (ओव्यूलेट) का अहम रोल होता है ठीक वैसे ही पुरुषों के शुक्राणुओं की भी उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है. हालांकि कई बार कई परीक्षण रिपोर्ट सामान्य होने के बाद महिलाओं को स्वाभाविक रूप से गर्भ धारण करने में मुश्किल आती है. लेकिन इसके पीछे पुरुषों में ‘इनफर्टिलिटी’ भी एक प्रमुख कारण है, जिसमें शुक्राणुओं की खासी भूमिका है. पुरुषों में शुक्राणुओं की गुणवत्ता और उसकी मात्रा गर्भ धारण करने में महत्वपूर्ण है और यह पुरुष प्रजनन क्षमता का एक निर्णायक कारक भी है. ऐसे में कई पुरुषों और महिलाओं के मन में यह सवाल रहता है कि आखिर शुक्राणु बनते कैसे हैं और गर्भधारण में इनकी भूमिका क्या है? इन्हें इन 7 बिंदुओं से समझा जा सकता है.

शुक्राणु और गर्भधारण से जुड़े 7 फैक्ट्स


1:  विशेषज्ञों के मुताबिक शुरुआत से अंत तक एक नई शुक्राणु कोशिका को बनने में करीब 10 हफ्तों का समय लगता है. एक औसत शुक्राणु पुरुष के शरीर में केवल कुछ ही हफ्तों तक जीवित रहता है. हर बार वीर्यपात के साथ कम से कम चार करोड़ शुक्राणु बाहर निकलते हैं. इसका मतलब यह है कि पुरुषों को अपने वयस्क जीवन के दौरान नियमित तौर पर शुक्राणुओं का उत्पादन करते रहना होता है.


2: संभोग (सेक्स) के दौरान पुरुषों में चर्मोत्कर्ष शुक्राणुओं से भरपूर वीर्य को योनि में डालता है और यह करीब 10 मील प्रति घंटे की दर से ग्रीवा की तरफ बढता है. एक्सपर्ट के मुताबिक वीर्यपात की तेजी शुक्राणु को अंडे तक पहुंचने के लिए एक अच्छी शुरुआत देती है. हालांकि गर्भाधान के लिए महिला का चर्मोत्कर्ष पर पहुंचना जरुरी नहीं है. गर्भाशय के हल्के संकुचन भी शुक्राणु को आगे ले जाने में मदद कर सकते हैं, मगर ये संकुचन चर्मोत्कर्ष पर पहुंचे बिना भी होते हैं.


3: बड़ी बात यह है कि जो हॉर्मोन्स महिलाओं में ओव्यूलेशन को नियंत्रित करते हैं, वे ही पुरुषों में टेस्टोस्टीरोन बनने की प्रक्रिया को उत्तेजित करते हैं. टेस्टोस्टीरोन हॉर्मोन पुरुषों में शुक्राणुओं के उत्पादन के लिए जिम्मेदार होता है.


4: लिंग के नीचे अंडकोषीय थैली में दो ग्रंथियां होती हैं जिन्हें वीर्यकोष (टेस्टिकल्स) कहा जाता है. इनमें शुक्राणुओं का उत्पादन है. तापमान के प्रति काफी संवेदनशील होने के कारण वीर्यकोष शरीर के बाहर लटके होते हैं, क्योंकि ये तापमान के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं, जो शरीर के सामान्य तापमान से 4 डिग्री अधिक ठंडा होता है. स्वस्थ शुक्राणुओं के निर्माण के लिहाज से इनका 34 डिग्री सेल्सियस के तापमान में रहना आवश्यक है.


5: जब एक बार शुक्राणुओं का निमार्ण हो जाता है तो यह दोनों वीर्यकोषों के अधिवृषण (ऐपिडिडिमिस) में संग्रहित हो जाते हैं. यह एक छह मीटर लंबी लच्छेदार नलिका होती है. जब वीर्यपात होता है तो इससे ठीक पहले शुक्राणु ऊपर की तरफ वीर्य में आकर मिल जाते हैं.


6: वैस तो लाखों शुक्राणुओं का उत्पादन पुरुष शरीर में होता है और हर वीर्यपात के साथ इनके बाहर आने के बावजूद केवल एक शुक्राणु ही इतना ताकतवर होता है कि वो महिला के शरीर में अंडे को निषेचित करने की ताकत रखता है.


7: अब सवाल यह उठता है कि संभोग के दौरान पुरुष शुक्राणु ​महिला के शरीर में प्रवेश तो कर जाते हैं कि पर यह कैसे तय होता है कि कंसीव हुआ है वो शिशु बेटा होगा या बेटी. तो यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौनसे गुणसूत्र वाला शुक्राणु पहले डिंब यानी महिला के एग या अण्डों में जाकर मिलता है. वाई (Y) गुणसूत्र वाले शुक्राणु से बेटे का जन्म होगा और एक्स (X) गुणसूत्र वाले शुक्राणु से बेटी का जन्म होगा. हालांकि यहां यह जानना जरूरी होगा कि शिशु का लिंग निर्धारण योजनाबद्ध नहीं हो सकता.

: डॉ. अनिल शर्मा, सीनियर यूरोलॉजिस्ट

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