आयुर्वेदिक उपायों से माताएं बच सकती हैं लैक्टेशन फैल्योर से

मां का दूध नवजात शिशु के लिए अमृत के समान अमूल्य और दुनिया का सर्वोत्तम आहार है। शिशु के स्वस्थ जीवन का आधार है। मां के शरीर में ब्रेस्ट मिल्क बनना एक नेचुरल प्रोसेस है। ब्रेस्ट फीडिंग प्रक्रिया बच्चे के जन्म लेने के साथ ही शुरू हो जाती है। तकरीबन 95 प्रतिशत महिलाएं पहले दिन से ही ब्रेस्ट फीडिंग कराने में सक्षम हो होती हैं। ऐसा संभव ही नहीं है कि दूध बने ही नहीं। आमतौर पर मां की ब्रेस्ट में दूध डिलीवर से पहले ही बनने लगा है। दूध पीने के लिए शिशु जब ब्रेस्ट को मुंह लगाता है या ब्रेस्ट-निप्पल को सक करना शुरू करता है। तब ब्रेस्ट स्टीमुलेट हो जाता है और ब्रेस्टमिल्क फ्लो होना शुरू हो जाता है। हालांकि ब्रेस्ट मिल्क का फ्लो शुरू के 3-4 दिन बाद तक कम होता है, लेकिन ढंग से फीड कराने पर यह बच्चे के लिए काफी होता है। मां का दूध धीरे-धीरे बढ़ता है। शिशु जितना ज्यादा दूध पीता है, मां के शरीर में दूध उतना अधिक बनता है। लेकिन कई बार माताएं अपने बच्चे के लिए पर्याप्त मात्रा में ब्रेस्ट मिल्क की आपूर्ति नहीं कर पाती जिसे लैक्टेशन फैल्योर कहते हैं।

क्यों है लैक्टेशन फैल्योर
कई माताएं अपने बच्चे के लिए पर्याप्त मात्रा में ब्रेस्ट मिल्क की आपूर्ति करने में असमर्थ रहती हैं। यानी ब्रेस्ट मिल्क बच्चे की जरूरत को पूरा नहीं कर पाता और बच्चा चिड़चिड़ा या बीमार रहने लगता है। इसके पीछे चाहे मां के हैल्थ संबधी व्यक्तिगत-सामाजिक या फिर शिशु का ब्रेस्ट फीड न करा पाना जैसे कई कारण हो सकते हैं। इससे ब्रेस्ट में दूध की सप्लाई रुक जाती है, दूध कम मात्रा में बनने लगता है ओैर ध्यान न दिए जाने पर उतरना बंद हो जाता है। इस स्थिति को ‘लैक्टेशन फैल्योर‘ कहा जाता है। शिशु मां के दूध से वंचित रह जाता है और उसे जन्म से ही फार्मूला मिल्क या गाय के दूध पर निर्भर रहना पड़ता है।

ब्रेस्ट मिल्क है संपूर्ण आहार
मां के शरीर में ब्रेस्ट मिल्क डिलीवरी के बाद शुरू हो जाता है। जन्म के तुरंत बाद जहां यह दूध गाढ़ा पीले रंग का और कम मात्रा में होता है, जिसे ‘कोलस्ट्रम‘ कहा जाता है। यह दूध डिलीवरी के 48 घंटे तक आता है जो असल में ‘मां का दूध‘ होता है और शिशु के लिए बहुत उपयोगी होता है। इसमें अनेक लाइफ सेविंग तत्व होते हैं जो शिशु के इम्यून सिस्टम को 90 फीसदी तक मजबूत बनाते हैं और कई गंभीर संक्रामक बीमारियों से बचाते हैं। डिलीवरी के बाद पहले 48 घंटों में बच्चे को 5-15 मिली प्रति फीड की जरूरत होती है जिसकी आपूर्ति उसे मां के गाढ़ा पीले रंग के कोलस्ट्रम मिल्क से आसानी से हो जाती है। शिशु की भूख और डिमांड या पीने की बारंबारता के आधार पर ब्रेस्ट मिल्क पतला और अधिक मात्रा में बनने लगता है। यह दूध 6 महीने तक के शिशु के लिए संपूर्ण आहार होता है। 6 महीने के बाद भले ही नवजात शिशु को टाॅप फार्मूला मिल्क या अर्द्ध-ठोस आहार देना शुरू कर दिया जाए, तो भी शिशु को कम से कम 2 साल तक ब्रेस्ट फीडिंग कराना मां-बच्चे दोनो के लिए फायदेमंद रहता है।

क्या हैं फायदे
वैज्ञानिको ने मां के दूध में पाए जाने वाले पोषक और एंटीआॅक्सीडेंट तत्वों की वजह से इसे ‘फस्र्ट वैक्सीन’ का दर्जा भी दिया है। ब्रेस्ट मिल्क शिशु का शारीरिक-मानसिक विकास ही नहीं करता, इम्यून सिस्टम को भी मजबूत बनाता है और विभिन्न बीमारियों से बचाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी शिशु को कम से कम जीवन के पहले 6 महीने तक ब्रेस्ट फीडिंग जरूर कराने की सिफरिश की है। जिसे 2 साल तक जारी रखा जा सकता है। बढ़ते शिशु की बढ़ती जरूरत के हिसाब से हालांकि 6 महीने के बाद अर्द्ध ठोस आहार या फार्मूला मिल्क देना शुरू करना पड़ता है। लेकिन कम से कम 2 साल तक ब्रेस्ट फीडिंग कराना जच्चा-बच्चा दोनों को फिट और हैल्दी रखने में सहायक माना जाता है।

लैक्टेशन फैल्योर रोकने हेतु ब्रेस्टमिल्क बढ़ाने के आयुर्वेदिक उपाय

ब्रेस्टमिल्क की कमी को पूरा करने के लिए आयुर्वेद ने कुछ प्राकृतिक उपाय बताए हैं। जिन्हें जरूरतमंद माएं घर पर आसानी से अपनाकर इस समस्या से निजात पा सकती हैं।
1. रात को एक चम्मच मेथी के बीज एक कप पानी में भिगो दें। सुबह इन्हें उबाल लें। ठंडा होन पर पानी छान कर पी लें। दिन में 2 बार मे थी कैप्सूल भी ले सकती हैं।
2. आधा चम्मच शहद में एक चुटकी दालचीनी मिलाकर दिन में दूध के साथ लें।
3. रात को सोते समय एक कप गर्म दूध में एक चुटकी दालचीनी पाउडर मिलाकर पिएं।
4. रात को सोने से पहले चीनी और भुने-पिसे जीरे का पाउडर का एक चम्मच मिश्रण गर्म दूध के साथ लें। जीरा, नमक और काली मिर्च लगा कर बनी रोटी या परांठा खाएं।
5. एक कप गर्म पानी में एक चम्मच सौंफ के बीज मिलाकर उबालें। ठंडा होने पर छान कर पानी पी लें।
6. एक-एक कटोरी सौंफ और जीरा लें। उसमें आधी कटोरी मिश्री मिलाकर चूर्ण बना लें। तैयार 1 चम्मच चूर्ण गर्म दूध के साथ दिन में एक बार लें।
7. लहसुन की कद्दूकस की हुई तीन फांके एक कप पानी में उबालें। छानकर आधा चम्मच शहद मिलाकर पिएं।
8. एक कप पानी में 6-8 बारीक कटे तुलसी के पत्ते डालकर 2-3 मिनट उबालें। ठंडा होने पर छने हुए पानी में थोडा शहद मिलाकर पिएं।
9. ताजा ड्रमस्टिक की फली का आधा गिलास रस पिएं। ड्रमस्टिक के पत्तों को एक कप पानी में चुटकी भर नमक मिलाकर उबालें। पत्तियां छान कर थोड़ा सा मक्खन मिलाकर खाएं।
10. शतावरी और अश्वगंधा का 2 चम्मच चूर्ण पानी के साथ लें। शतावरी के कैप्स्यूल भी ले सकते हैं।

डाॅ. कोमल मलिक, मेडिकल ऑफिसर, एनडीएमसी आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी, दिल्ली

India Health TV

subscribe now