भारत भूमि वह विस्तृत भू-भाग है जिसमें भोजन के रूप में ग्रहण किये जाने वाली सामग्री में प्रचूर विभिन्नता मिलती है। हर क्षेत्र और संस्कृति के अनुरूप भोजन की पृथक और वृहद् श्रृंखला यहां देखने को मिलती है। तथापि भारतीय भोजन की अगर बात की जाये तो इसकी महत्ता के संदर्भ में श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय के चौबीसवें श्लोक में कुछ इस प्रकार उल्लेख किया गया है।
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।
अर्थात् जिन वस्तुओं को हम भोजन के रूप में ग्रहण कर रहे हैं उन्हें ब्रह्म का स्थान प्राप्त है। हमारा भोजन स्वयमेव ब्रह्म है। हमारी भूख की अग्नि में ब्रह्मा का वास है। पाचन क्रिया भी ब्रह्मा का कार्य है और यह सब प्रक्रिया ब्रह्म ही है। यहां ध्यानार्कषण की बात यह है कि भारतीय ज्ञान मनीषा में भोजन को ब्रह्म का रूप इंगित करना इसकी प्रधानता और महत्ता को परिभाषित करता है। आज भारतीय भोजन में सम्मिलित हर व्यंजन एक कहानी कहता है, जिसमें संस्कृति, परंपरा और स्वास्थ्य का मेल होता है। भारत की विविधता उसकी भोजन की थाली में भी दिखाई देती है। यथा उत्तर भारत में मक्खन और क्रीम से बने व्यंजन लोकप्रिय हैं, जबकि दक्षिण भारत में नारियल और इमली का प्रयोग अधिकाधिक होता है। पश्चिम भारत में मसालेदार और मिठास से भरपूर व्यंजन मिलते हैं, जबकि पूर्वी भारत में मछली और चावल का प्रमुखता से सेवन किया जाता है। भारत का पारंपरिक आहार न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी होता है। यह भारतीय पारंपरिक भोजन क्षेत्रीय जलवायु और क्षेत्रीय संसाधनों के अनुसार हैं जिससे कि जहां जैसी जैवीय परिस्थ्ति और जलवायु है उसी के अनुसार भोजन ग्रहण किया जा सके। विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। जिनमें कई प्रकार की सब्जियां, दालें, अनाज, मसाले और दूध से बने उत्पाद शामिल होते हैं। यह आहार न केवल शरीर को आवश्यक पोषण तत्व प्रदान करता है, बल्कि इसके नियमित सेवन से अनेक बीमारियों से भी बचा जा सकता है।
भारत में कुपोषण एक गंभीर समस्या है जो बच्चों और वयस्कों को समान रूप से प्रभावित कर रही है। कुपोषण एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति के शरीर को उचित पोषण नहीं मिल पाने से उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह समस्या उन व्यक्तियों में अधिक होती है जो सही मात्रा और गुणवत्ता का भोजन नहीं ले पाते या उनके शरीर को आवश्यक पोषण तत्व नहीं मिल पाते। कुपोषण के कारण व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है और उसे कई प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, 2019-2021 के दौरान, देश में पांच साल से कम उम्र के 36% बच्चे अविकसित (स्टंटेड) थे, 32% बच्चे कम वजन (अंडरवेट) थे और 19% बच्चे कुपोषण (वेस्टेड) से पीड़ित थे। हालांकि, हमारे देश में ऐसी कई पारंपरिक खाने की चीजें हैं जो पोषण से भरपूर होती हैं और कुपोषण को दूर करने में सहायक साबित हैं। भारतीय भोजन विविधता से भरा हुआ है और इसमें क्षेत्रीय विशेषताओं के साथ-साथ सांस्कृतिक परंपराएँ भी जुड़ी हुई हैं। भारतीय व्यंजन सिर्फ स्वादिष्ट ही नहीं, बल्कि पोषण से भरपूर भी होते हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के अनाज, दालें, सब्जियाँ, फल, और मसाले शामिल होते हैं जो मिलकर संतुलित आहार प्रदान करते हैं।
कुपोषण में आहार की आवश्यकता
कुपोषण को दूर करने के लिए आहार में निम्न पोषण तत्वों का समावेश आवश्यक होता है-
1. प्रोटीनः मांसपेशियों के विकास और मरम्मत के लिए।
2. विटामिन और खनिजः शरीर की सही क्रियाविधियों के लिए, जैसे कि विटामिन ए, सी, डी, क्रमशः आयरन, कैल्शियम, और जिंक के लिए।
3. कार्बोहाइड्रेटः ऊर्जा के मुख्य स्रोत के रूप में।
4. फैटः स्वस्थ वसा जो शरीर के विभिन्न अंगों और तंत्रिकाओं के कार्य के लिए आवश्यक है।
5. फाइबरः पाचन तंत्र के सही कार्य के लिए।
1. दालें और बीन्स
दालें और बीन्स प्रोटीन के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। चना, मूंग, अरहर, मसूर जैसी दालें भारत में व्यापक रूप से उपयोग की जाती हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अनुसार, दालें न केवल प्रोटीन बल्कि फाइबर, विटामिन और खनिजों से भी भरपूर होती हैं। नियमित रूप से दाल का सेवन शरीर को आवश्यक पोषण प्रदान करता है और प्रोटीन की कमी को पूरा करता है। 100 ग्राम दाल में लगभग 18-25 ग्राम प्रोटीन होता है।
2. हरी पत्तेदार सब्जियाँ
पालक, मेथी, सरसों और साग जैसी हरी पत्तेदार सब्जियाँ आयरन, कैल्शियम, विटामिन ए, सी और के का उत्कृष्ट स्रोत हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के एक अध्ययन के अनुसार, ये सब्जियाँ हीमोग्लोबिन बढ़ाने में मदद करती हैं और एनीमिया जैसी समस्याओं से लड़ने में सहायक होती हैं। 100 ग्राम पालक में 23 कैलोरी, 3 ग्राम प्रोटीन, और 2.2 मिलीग्राम आयरन होता है।
3. दूध और डेयरी उत्पाद
दूध और इससे बने उत्पाद जैसे दही, पनीर, और छाछ कैल्शियम और प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के अनुसार, ये बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए हड्डियों और दाँतों को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण हैं। डेयरी उत्पादों का नियमित सेवन पोषण की कमी को पूरा करने में मदद करता है।
4. अंडे
अंडे प्रोटीन, विटामिन बी12, विटामिन डी और कई अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, रोज एक अंडा खाने से शरीर को आवश्यक पोषण मिलता है, खासकर बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए यह आवश्यक है।
5. अनाज
चावल, गेहूं, बाजरा, ज्वार, और रागी जैसे अनाज ऊर्जा के मुख्य स्रोत होते हैं। ये कार्बोहाइड्रेट, फाइबर और कई विटामिन और खनिजों से समृद्ध होते हैं। बाजरा और रागी में आयरन और कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है। एक अध्ययन के अनुसार, बाजरा और रागी का सेवन करने वाले बच्चों में हड्डियों का विकास बेहतर होता है।
6. फल
फल विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सिडेंट का प्रमुख स्रोत होते हैं। संतरा, आम, केला, पपीता, और जामुन जैसे फल शरीर को आवश्यक पोषण प्रदान करते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। भारतीय पोषण संस्थान (NIN) के अनुसार, फल खाने से बच्चों में विटामिन की कमी को दूर किया जा सकता है।
7. सूखे मेवे और बीज
– बादाम, अखरोट, काजू, चिया बीज और अलसी जैसे सूखे मेवे और बीज प्रोटीन, फाइबर, स्वस्थ वसा और कई महत्वपूर्ण विटामिन और खनिजों का स्रोत हैं। ये स्नैक्स के रूप में या भोजन में मिलाकर खाने के लिए उत्कृष्ट होते हैं। एक शोध के अनुसार, सूखे मेवे और बीजों का सेवन करने से बच्चों में ऊर्जा तथा पोषण स्तर में सुधार होता है।
8. भारतीय मसाले
– भारतीय भोजन में मसालों का विशेष महत्व है। हल्दी, जीरा, धनिया, अदरक और लहसुन जैसे मसाले न केवल स्वाद बढ़ाते हैं बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होते हैं। हल्दी में करक्यूमिन होता है जो एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सिडेंट गुणों से भरपूर है। जीरा और धनिया पाचन में सहायक होते हैं और अदरक-लहसुन में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले गुण होते हैं।
कुपोषण दूर करने के लिए कुछ भारतीय व्यंजन –
कुपोषण को दूर करने के लिए यहाँ कुछ पोषणयुक्त भारतीय व्यंजन सुझाए गए हैं –
1. मूंग दाल खिचड़ी – मूंग दाल और चावल को मिलाकर बनाई गई खिचड़ी एक संतुलित भोजन है जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फाइबर होते हैं। इसमें सब्जियाँ मिलाकर इसे और भी पोषणयुक्त बनाया जा सकता है।
2. पालक पनीर – पालक पनीर आयरन और कैल्शियम से भरपूर होता है। पालक में आयरन तथा पनीर में प्रोटीन और कैल्शियम होता है, जो हड्डियों को मजबूत करने के साथ हीमोग्लोबिन के लिए भी आवश्यक होता है।
3. दलिया – दलिया एक अच्छा नाश्ता है जो फाइबर, विटामिन और खनिजों से भरपूर होता है। इसे दूध और फलों के साथ मिलाकर पोषण और स्वाद दोनों को बढ़ाया जा सकता है।
4. रागी लड्डू – रागी कैल्शियम और आयरन का अच्छा स्रोत है। रागी के आटे से बने लड्डू कुपोषण को दूर करने में सहायक हो सकते हैं, खासकर बच्चों और महिलाओं के लिए यह कारगर साबित होते हैं।
5. अंडा करी – अंडे की करी प्रोटीन और विटामिन से भरपूर होती है। इसे चावल या रोटी के साथ परोसकर एक संपूर्ण भोजन (पोषणयुक्त) बनाया जा सकता है।
6. सूजी का हलवा – सूजी का हलवा एक पौष्टिक मिठाई है जिसमें सूजी, दूध, और मेवे मिलाए जाते हैं। यह विटामिन, मिनरल और ऊर्जा का अच्छा स्रोत है।
राजस्थान के कुछ प्रसिद्ध भोजन जो कुपोषण मिटाने में कारगर हैं :
1. बाजरे की रोटी – बाजरे की रोटी राजस्थान का प्रमुख भोजन है। बाजरे में फाइबर, प्रोटीन, और आयरन प्रचुर मात्रा में होते हैं। यह रोटी पाचन तंत्र को सही रखने में मदद करती है और शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है। बाजरे की रोटी विशेष रूप से ठंड के मौसम में खाने के लिए उत्तम मानी जाती है।
2. दाल बाटी चूरमा – दाल बाटी चूरमा राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध व्यंजन है। बाटी, जो गेहूं के आटे से बनाई जाती है। इसके साथ मूंग या चने की दाल और मीठा चूरमा परोसा जाता है। यह व्यंजन प्रोटीन, फाइबर, और कार्बोहाइड्रेट्स से भरपूर होता है, जो शरीर को आवश्यक पोषण प्रदान करता है।
3. गट्टे की सब्जी – गट्टे की सब्जी बेसन (चने के आटे) से बनाई जाती है। इसमें मसालों का भरपूर इस्तेमाल होता है, जो इसे स्वादिष्ट बनाता है। बेसन प्रोटीन का अच्छा स्रोत है और यह सब्जी पाचन में सरल होती है।
4. केर सांगरी – यह राजस्थान का एक पारंपरिक व्यंजन है, जो सूखी सब्जियों से बनाया जाता है। केर और सांगरी सूखी फलियाँ होती हैं जो प्रोटीन, फाइबर, और आयरन से भरपूर होती हैं। यह व्यंजन राजस्थान जैसे शुष्क प्रदेश में इसकी जलवायु में भी लंबे समय तक सुरक्षित रहता है।
5. कढ़ी – राजस्थानी कढ़ी बेसन और दही से बनाई जाती है। यह व्यंजन प्रोटीन, कैल्शियम, और प्रोबायोटिक्स से भरपूर होता है, जो पाचन तंत्र को सुधारने में मदद करता है।
6. घेवर – यह एक पारंपरिक मिठाई है, जो विशेष रूप से त्यौहारों और विशेष अवसरों पर बनाई जाती है। घेवर मैदा, दूध, और घी से बनाया जाता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट्स और फैट्स होते हैं, जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
7. लहसुन की चटनी – लहसुन की चटनी राजस्थान में बहुत लोकप्रिय है। यह चटनी लहसुन, लाल मिर्च, और अन्य मसालों से बनाई जाती है। लहसुन में एंटीऑक्सीडेंट्स और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं।
भारतीय भोजन में शामिल ये तत्व न केवल स्वादिष्ट होते हैं बल्कि पोषण से भरपूर भी होते हैं। सही संतुलन और विविधता के साथ इन्हें अपने आहार में शामिल करने से कुपोषण की समस्या को प्रभावी ढंग से कम किया जा सकता है। अगर कोई व्यक्ति वास्तव में भारतीय पांरपरिक भोजन कर रहा हो तो निःसंदेह वह कुपोषित नहीं होगा तथा स्वस्थ चित्त और स्वस्थ मन से अपने कार्य को सम्यक रूप प्रदान करेगा। भारतीय भोजन अर्थात् सही पोषण का चुनाव कर हम स्वस्थ जीवन की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं जिससे हमारा देश भारत कुपोषण जैसी समस्या को जड़ से समाप्त कर स्वस्थता को कायम कर सके। और जब स्वस्थ व्यक्तियों का वास हमारे देश में होगा तो निश्चित ही हम विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। लेकिन यह सब होगा पारंपरिक भारतीय भोजन को अपनाकर। इसलिए आज यह आवश्यक है कि हम स्वयं और हमारे घर में भी पारंपरिक-पोषणयुक्त भारतीय भोजन को अपनाने के लिए कृतसंकल्पित हों।
डॉ. सुनिधि मिश्रा, न्यूट्रिशनल एक्सपर्ट