लापरवाही पर जानलेवा हो सकता है हर्निया, समय रहते पहचानें इन 7 लक्षणों को

जब मनुष्य के पेट की मसल कमजोर हो जाती हैं या कोई डिफेक्ट पैदा हो जाता है तो पेट के किसी भी हिस्से में उभार को हर्निया कहा जाता है। साधारण भाषा में इसे हवा भरना भी कहते हैं। यह उभार लेटने पर गायब हो जाता है। पुरूषों में महिलाओं के मुकाबले 20 गुणा अधिक यह समस्या पाई जाती है। हर्निया में पेट की मांसपेशिया कमजोर होने से अंदर से आंतें या कोई कंटेंट बाहर आने लगता है और लेट जाने पर वापस चला जाता है। हर्निया के कारण कई बार खांसते वक्त, खड़े होते वक्त, चलते व वक्त या कोई अन्य कार्य करते वक्त परेशानी होने लगती है और लेट जाने पर इसमें आराम मिलता है। शरीर के 80 प्रतिशत हर्निया पेट के नीचे के हिस्से ग्रोइन में पाए जाते हैं।

हर्निया के प्रमुख तीन प्रकार:
1. जन्मजात हर्निया
2. जन्म के पश्चाात
3. शल्य चिकित्सा के पश्चात

हर्निया के मुख्य लक्षण:
1. पुरूषों के अण्डकोष में सूजन होना, हवा भरना या पानी भरना जो लेटने पर समाप्त हो जाती है।
2. खड़े होने पर, खांसी करने पर अथवा वजन उठाने पर फुलावट आना।
3. नाभि के आसपास फुलावट आना।
4. पेट में लागातार या बीच-बीच में दर्द होना।
5. लेटने पर भी गायब नहीं होने वाले उभार में दर्द बना रहना, क्योंकि यह आस-पास की मांस पेशियों से चिपक जाता हैै।
6. आंतो के उलझने पर गांठ में तीव्र दर्द पैदा होना, आफरा आना तथा मलद्वार से हवा एवं मल का निकास बन्द होना। उल्टी होना इत्यादि लक्षण हो सकते हैं। इसे ऑब्स्टक्टिव हर्निया कहा जाता है।
7. ऑपरेशन के पश्चात चीरे वाले स्थान पर उभार पैदा होना। पेट में दर्द बना रहना।

 

हर्निया के कारणः
1. शरीर में ऐसा कोई भी कारण जो पेट के अंदर का दबाव बढाता है। हर्निया का कारण होता है। जैसे- लगातार लंबे समय से खांसी या छींकते रहने पर (सीओपीडी), लंबे समय से कब्ज रहना, लंबे समय से पेशाब करने में जोर लगाना जो प्रोस्टेट के बढ़ने, पेशाब की थैली में पथरी होने या मूत्र नली के सिकुड़ने के कारण हो सकता है।
2. अधिक वजन उठाने से होने वाले जोखिम।
3. अधिक मोटापा।
4. लगातार खड़े रहने की आदत या दिनचर्या।
5. ऑपरेशन के पश्चात चीरे वाले स्थान से।
6. कुपोषण के कारण।
7. गर्भवस्था के दौरान पेट पर पड़ने वाला दबाव।

उपचार:
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में हर्निया की शल्य चिकित्सा में क्रान्तिकारी परिवर्तन आए हैं, जिसमें दूरबीन द्वारा छोटे चीरे से ऑपरेशन प्रमुख है। इस विधि में विशेष जाली का प्रयोग किया जाता है तथा जिसे स्टेपलर द्वारा स्थिर कर दिया जाता है। इससे जल्द स्वास्थ्य लाभ मिलता अतिशीघ्र होता है तथा शारीरिक पीड़ा भी काफी कम होती है। पारम्परिक विधि से किए गए हर्निया के मुकाबले इसमें पुनः होने की सम्भावना भी कम होती है। परन्तु यह शल्य चिकित्सा काफी महंगी होती है तथा इस क्षेत्र का विशेषज्ञ ही यह शल्य चिकित्सा कर सकता है। स्वास्थ्य लाभ में करीब 20 से 30 दिन का समय लगता है। सभी प्रकार के हर्निया में शल्य चिकित्सा इसका कारगर स्थाई इलाज माना जाता है। अस्थाई इलाज के लिए विशेष प्रकार से बनी हर्निया बेल्ट का उपयोग करना चाहिए। इसके लगाने से हर्निया पेट से बाहर आने से रूक जाता है।

सावधानी एवं बचाव:
1. अधिक वजन उठाने से बचें।
2. शारीरिक वजन को कम रखना चाहिए।
3. लंबे समय से खांसी, कब्ज, पेशाब में रूकावट हो तो तुरंत इलाज लेना चाहिए।
4. चीरे वाले ऑपरेशन के पश्चात पूरा आराम जरूरी है।
5. पेट पर किसी भी प्रकार का उभार होने पर चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए।

जटिलताएंः
पुरूषों में शुकाणुओं की कमी आ सकती है, जो नपुसंकता का कारण हो सकता है। आंतों के उलझने पर शल्य चिकित्सा की आवश्यकता में देरी करने पर आंतों में खून का दौरा समाप्त हो सकता है, जो जानलेवा भी साबित हो सकता है। अतः ऐसी स्थिति से बचने के लिए हर्निया का
यथाशीघ्र इलाज कराना चाहिए।

– डाॅ. सिद्वार्थ गुप्ता, जनरल सर्जन

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