कोरोना काल के दौरान एक बार फिर होम्योपैथी चिकित्सा ने अपने आप को स्थापित किया. लोगों को कोरोना की जंग से मुकाबला करने और इम्युनिटी सिस्टम को मजबूत बनाए रखने में होम्योपैथी ने जो अहम भूमिका निभाई वो किसी से छुपी नहीं है. सबसे सस्ते इलाज का विकल्प होम्योपैथी ने उपलब्ध कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
यह चिकित्सा पद्धति जावित अंगों में छिपी अदृश्य गतिशील शक्ति की पहचान कर लेती है, जिसे “विशिष्ट शक्ति” भी कहा जाता है और शरीर के सभी क्रिया कलापों को संचालित कर जीवन को बेहतर बनाए रखती है. इस विशिष्ट शक्ति की मृदुल शक्ति के कारण ही स्वास्थ्य बना रहता है. जब यह शक्ति क्षीण हो जाती है तो व्यक्ति बीमार पड़ जाता है. जब होम्योपैथिक दवाएं बीमार व्यक्ति को दी जाती हैं तो वह इसी शक्ति को जागृत करती हैं तथा स्वास्थ्य को पुनः पटरी पर लाती हैं. शरीर में किसी प्रकार के डिसॉर्डर के कारण हारमनी अथवा संतुलन का क्षय ही है जो संकेतों व लक्षणों में बादल जाता है जिसे बीमारी कहा जाता है. जब हमारे शरीर में यही हारमनी लौट आती है तो हम स्वास्थ्य पुनः प्राप्त कर सकते हैं.
1. होम्योपैथी चिकित्सा एक ऐसी पद्धती है जो मरीज की अवस्था और रोग की स्थिति व गंभीरता के आधार पर इलाज करती है. इसके अलावा दवा का असर तब ही होता है जब मरीज इन्हें डॉक्टर द्वारा बताए गए समय के अंतराल तक लेता रहे. जैसे क्रॉनिक (पुरानी) रोगों में नियमित दवा लेने से रिकवरी जल्दी होती है.
2. इस बात को भी समझ लेना जरूरी है कि होम्योपैथी दवा के दुष्प्रभाव तब ही हो सकते हैं जब आप एक होम्योपैथी डॉक्टर की सलाह के बिना दवा लेते हैं. क्योंकि होम्योपैथी चिकित्सक रोग की मूल वजह व लक्षण के अलावा मरीज का स्वभाव, आदतें, गतिविधियां आदि को आधार मानने के बाद ही उचित दवा का निर्धारण करते हैं. इसलिए विशेषज्ञ की सलाह के बिना किसी भी प्रकार से दवा लेना ठीक नहीं है.
3. होम्योपैथी चिकित्सक इस बात को प्राथमिकता देते हैं कि वे एक समय पर किसी भी मरीज़ का प्रबंधन एकल औषधि पद्धति से ही करें. न कि कई दवाओं के मेल से क्योंकि कई दवाओं का सम्मिलित प्रभाव एकल पदार्थ के प्रभाव से भिन्न होगा. आमतौर पर होम्योपैथिक दवाएं एकल पद्धति पर ही दी जाती हैं, जो कि दवाओं का सरल व अहानिकारक रूप है. यहां तक कि यदि कोई बीमार व्यक्ति कई व्याधियों से ग्रसित है, तो भी होम्योपैथिक चिकित्सक अलग अलग दवाएं नहीं देते. इसके स्थान पर वे मात्र एकल दवा पद्धति से ही इलाज करते हैं जो शरीर के अन्य महत्वपूर्ण लक्षणों में भी समान रूप से लाभकारी होती है.
4. होम्योपैथिक दवाएं जो किसी भी बीमार व्यक्ति के लिये निर्धारित की जाती हैं, उनकी मात्रा कम से कम रखी जाती है. अतः जब उनका प्रबंधन होता है तो वे शरीर में कोई विषाक्त प्रभाव नहीं छोड़तीं. इसलिए होम्योपैथी दवाएं नुकसान रहित होती है, इसमें ऐसा नहीं होता कि ज्यों ज्यों दवा ली मर्ज बढता गया या एक बीमारी ठीक करने के चक्कर में शरीर को दूसरे नुकसान होने लगें.
5. होम्योपैथी सिद्धान्त की सबसे उत्कृष्ट विशेषता है “ड्रग डाइनामाईज़ेशन”. होम्योपैथिक दवाएं विशेष प्रकार से ड्रग डाइनामाईज़ेशन अथवा पोटेन्शियाईज़ेशन पद्धति से तैयार की जाती हैं. कच्ची औषधि को घोल में परिवर्तित किया जाता है ताकि उसकी गुणवत्ता में वृद्धि हो सके. इस प्रकार पदार्थ की औषधीय गुणवत्ता बनी रहती है तथा उसके वाह्य प्रभाव समाप्त हो जाते हैं. यह माना जाता है कि इस प्रक्रिया के द्वारा होम्योपैथिक दवाएं बनाने से उनमें आवश्यक शक्ति बनी रहती है जो कि एक सुरक्षित व उपचार शक्ति से परिपूर्ण होती हैं. पोटेन्शियाईज्ड दवाएं शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करती हैं तथा उत्प्रेरक ग्रंथियों को और अधिक उकसाती हैं. जब इन दवाओं को यान्त्रिक प्रक्रिया से तैयार किया जाता है तो इनकी क्षमताएं भिन्न भिन्न होती हैं.
: एस.के. जोशी, वरिष्ठ होम्यापैथी चिकित्सक