बच्चे हों या फिर बड़े, हर काेई मोबाइल फोन, लैपटॉप और सोशल मीडिया पर घंटों बिता रहा है। मोबाइल फोन हमारी लाइफ का अहम हिस्सा तो बन गया है लेकिन अब यह किसी आफत से कम भी नहीं। इस वजह से कम उम्र में बच्चों और आम लोगों को डिजिटल आई स्ट्रेन की समस्या झेलनी पड़ रही है। अगर समय रहते सावधानी नहींं बरती जाए तो आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है। आई स्ट्रेन से संबंधित केसेज की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। आई स्ट्रेन वह स्थिति है, जिसमें आंखों के ऑप्टिक नर्व के फ्रंट पार्ट के टिश्यू में ब्लड और ऑक्सीजन की सप्लाई कम हो जाती है, जिसकी वजह से आंखों में थक्का बनने लगता है और रेटिना की नसें और आर्टरीज सिकुड़नें लगती हैं, जिससे धीरे-धीरे आंखों की रोशनी कमजोर होती जाती है।
कौन आता है जल्दी चपेट में?
ये बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन सबसे ज्यादा इस बीमारी का शिकार वो लोग बनते हैं जो ज्यादा समय तक कम्प्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल फोन की स्क्रीन का इस्तेमाल करते हैं। ऑफिस वर्किंग वाले लोग या दिनभर मोबाइल का इस्तेमाल करने वाले एडिक्ट लोग इस बीमारी की चपेट में ज्यादा आते हैं। वजह है कि वे पूरा-पूरा दिन लैपटॉप और मोबाइल पर लगे रहते हैं। पेरेंट्स के बिजी शेड्यूल की वजह से बच्चे भी आउटडोर गेम्स की जगह दिनभर मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं, बेहद नजदीक से मोबाइल स्क्रीन देखते हैं। जिससे वो आसानी से आई स्ट्रेन का शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, किडनी के पेशेंट्स इस बीमारी की चपेट में आसानी से आ रहे हैं।
बढ रहा डिजिटल डिमेंशिया
आई स्ट्रेन ही नहीं मोबाइल, लैपटॉप, कम्प्यूटर स्क्रीन जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल बच्चों और बड़ों दोनों के लिए घातक साबित हो रहा है और उन्हें डिजिटल डिमेंशिया का शिकार बना रहा है। सुबह उठने, खाना खाने, भूख से लेकर नींद तक, बॉडी के तमाम बायलॉजिकल सिस्टम पर इसका नकारात्मक असर पड़ रहा है। डिजिटल डिमेंशिया का अर्थ याददाश्त कमजोर होने से है। इंटरनेट एक्सपोजर का दिमाग के न्यूरॉन सिस्टम पर बुरा असर पड़ रहा है। हर उम्र के लोगों के स्वभाव में नकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है। तनाव, ओवरथिंकिंग, लो कंसंट्रेशन, चिड़चिड़ापन, गुस्सेल स्वभाव के मामले दिनों-दिन बढ़ रहे हैं। मोबाइल और इंटरनेट के अधिक उपयोग से दिमाग के न्यूरॉन सिस्टम डिस्टर्ब हो रहा है। सेल फोन रेडिएशन से दिमाग के सेल्स में कैल्शियम का लेवल बढ़ जाता है, जो अल्जाइमर की बीमारी का मुख्य कारक हो सकता है।
ये होते हैं लक्षण
इस बीमारी की चपेट में आने से नजर में धुंधलापन आना शुरू हो जाता है। सुबह उठने के बाद आंखों के एक हिस्से में अंधेरेपन की शिकायत होने लगती है। किसी वस्तु को देखने में आंख के एक हिस्से मे अंधेरापन दिखाई देने लगता है। आंखों में खुजली व सूजन की समस्या होना और लगातार आंखों में से पानी का आना शुरू हो जाता है।
बचाव के उपाय
रात में अंधेरेपन में लैपटॉप और फोन का इस्तेमाल ना करें। फोन की नीली रोशनी आंखों को नुकसान पहुंचाती है। लैपटॉप, कम्प्यूटर या मोबाइल का इस्तेमाल करते समय ब्लू लेंस वाला चश्मा पहनें। लैपटॉप या फोन को इस्तेमाल करते समय आंखों से कम से कम 1 फीट की दूरी जरूर रखनी चाहिए। बीच बीच में ठंडे पानी से आंखों को धोते रहें।
20-20-20 का नियम अपनाएं
20-20-20 का नियम आंखों के तनाव को रोकने और राहत देने के लिए एक सरल और प्रभावी तकनीक है। यह आंखों को जरूरी आराम देने के लिए स्क्रीन टाइम से नियमित रूप से ब्रेक लेने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके मुताबिक हर 20 मिनट में 20 सेकंड का ब्रेक लें।
अपने 20 सेकंड के ब्रेक के दौरान, अपने से कम से कम 20 फीट दूर किसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित करें। ऐसा करने से आप आंखों के तनाव और परेशानी को काफी हद तक कम कर सकते हैं। 20-20-20 नियम के पीछे का विचार लगातार स्क्रीन के संपर्क के चक्र को तोड़ना और अपनी आंखों की मांसपेशियों को आराम देना है।
हेल्दी डाइट चार्ट मददगार
आंखों की रोशनी कम न हो, इसके लिए हेल्दी डाइट चार्ट फॉलों करें। नट्स और बीन्स, पत्तेदार हरी, गाजर, खट्टे फल, एवोकाडो, बादाम और सूरजमुखी के बीज आदि चीजों का नियमित सेवन करें। समय-समय पर अपना शुगर लेवल चैक कराते रहें। शुगर लेवल नियंत्रित रखने के हिसाब से डाइट लें। शराब और स्मोकिंग से दूर रहें।