क्या आप जानते हैं ऑस्टियोपोरोसिस एक ऐसा गंभीर रोग है जो हड्डियों को कमज़ोर करता है. जिससे अप्रत्याशित फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है. इस बीमारी को ‘मूक रोग’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह बीमारी बिना किसी दर्द या लक्षणों के बढ़ती है.
विशेषज्ञों के एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में हर 3 सेकंड में एक व्यक्ति ऑस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर का शिकार हो जाता है. खासकर 45 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को मधुमेह और दिल के दौरे सहित कई अन्य बीमारियों की तुलना में, ऑस्टियोपोरोसिस की वजह से होने वाले फ्रैक्चर के कारण ज्यादा दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ता है.
ऑस्टियोपोरोसिस बीमारी हड्डियों ऐसी बीमारी है जो एस्ट्रोजेन हार्मोन के कारण होती है. इसे ब्रिटनबोर्न डिजीज भी कहते हैं. दूसरे देशों की अपेक्षा भारत में अधिक पाई जाने वाली बीमारियों में से यह भी एक बीमारी है. इस बीमारी से शरीर की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. यह ओल्ड एज में होने वाली वह बीमारी है जिससे शरीर में हड्डियां कमजोर पड़, दर्द करने लगती है और जल्दी ही फैक्चर होने का डर रहता है. इसे सिनाइल ओस्टो प्रोसेस भी कहते हैं.
खासतौर से ऑस्टियोपोरोसिस बीमारी में कलाई हड्डी, रीड की हड्डी और कुले की हड्डी का टूटना आम माना जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो इसमें हड्डियों में मौजूद छोटे-छोटे पार्ट फटने लगते हैं. पुरुषों में भी यह बीमारी होती है लेकिन महिलाएं ज्यादा पाई जाती हैं. अधिकतर उम्रदराज महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा ज्यादा होता है. कई बार यह बीमारी हो तो जल्दी जाती है लेकिन इसका प्रभाव देर से दिखता है.
महिलाओं को ज्यादा खतरा क्यों?
महिलाओं में हड्डियों की यह बीमारी मेनोपॉज यानी मासिक धर्म बंद हो जाने के बाद से होती है. महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन हड्डियों को मजबूत बनाए रखने में योगदान देता है. यह ऐसा हार्मोन है जो ओवरीज़ द्वारा निर्मित होता है और यह हड्डियों के कमजोर होने से रोकने में मददगार होता है. 27 साल की उम्र तक हड्डियों का पूरा विकास हो जाता है और इस उम्र में हड्डियां सबसे ज्यादा मजबूत होती हैं. लेकिन मेनोपाज के बाद एस्ट्रोजन का स्तर घटता है और इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है और हड्डियों कमजोर होने लग जाती हैं. इस स्थिति में हार्मोनल थेरेपी की मदद लेकर एस्ट्रोजन को रिप्लेस किया जाता है.
लक्ष्णों को पहचानें
ऑस्टियोपोरोसिस के बारे में यदि सही समय पर जानकारी मिल जाए तो उससे बचा जा सकता है। शुरुआत में हल्का दर्द होता है जिसे लोग अमूमन नजरअंदाज कर देते हैं। यह दर्द कमर और गर्दन की हड्डियों और मांसपेशियों से शुरू होता है। यह दर्द हफ्तों या महीनों तक रह सकता है। हड्डियों की कमजोरी ऐसी होती है कि हल्की सी चोट लगने पर भी फ्रेक्चर हो जाता है। मेनोपाज की स्थिति में हड्डियों और मांसपेशियों में दर्द महसूस होने लग जाता है , यह दर्द तीखा होता है। ऐसी स्थिति में तुरंत चिकित्सक से सलाह लेनी जरूरी है।
बचाव के 7 उपाय
1. कैल्शियम और विटामिन डी युक्त चीजों को नियमित भोजन में शामिल किया जाए तो हड्डियां मजबूत बनेंगी.
2. दूध, पनीर, हरी सब्जियां, दही आदि का सेवन जरूरी है. और यदि आप मांसाहारी हैं तो मछली का भी सेवन कर सकते हैं.
3. कैल्शियम को शरीर में खपाने के लिए विटामिन डी की जरूरत होती है. इसलिए रोजाना नियम बना लें कि धूप में बीस मिनट जरूर बैठें.
4. वजन को संतुलित रखना बेहद आवश्यक है ना तो बहुत अधिक वजन हो कि हड्डियां आपका वजन झेल ना सकें, ना ही इतना कम वजन हो कि कुपोषण के कारण यह बीमारी आपकी हड्डियों को और कमजोर कर दे. स्वस्थ मांसपेशियों और हड्डियों के लिए पोष्टिक भोजन, आवश्यक पोषक तत्व, पर्याप्त कैलोरी महत्वपूर्ण है.
5. उन लोगों को ओस्टियोपोरोसिस बीमारी जल्दी पकड़ लेती है जो कि स्टेरॉइड या रक्त पतला करने वाली दवाइयों का सेवन करते हैं. इससे बचना चाहिए और चिकित्सक की सलाह बगैर इसका सेवन न करें.
6. शराब और धूम्रपान का सेवन नुकसान पहुंचा सकता है. जो लोग नियमित रूप से धूम्रपान करते हैं, उनमें एस्ट्रोजन का स्तर कम हो जाता है, जो नुकसानदायक है.
7. रजोनिवृत्ति के बाद, मांसपेशियों की ताकत और हड्डी का द्रव्यमान, दोनों के रखरखाव के लिए व्यायाम जरूरी हो जाता है. ऐसे में हड्डी की मजबूती को बनाए रखने के साथ नियमित व्यायाम इसलिए जरूरी है क्योंकि यह मांसपेशियों के कार्य को बेहतर बनाने, ताकत व संतुलन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. वॉकिंग, जॉगिंग, डांसिंग के जरिए इस बीमारी को दूर रखा जा सकता है। सप्ताह में दो या चार बार वजन उठाने की एक्सरसाइज करेंगे तो यह फायदेमंद होगा.
: डॉ. आशीष राणा, हड्डी रोग विशेषज्ञ