समय पर कराएं फिस्टुला का इलाज, गंभीर बीमारियों का जोखिम होगा कम

आधुनिक जीवनशैली में फिस्टुला एक आम समस्या हो चली है. लेकिन इसका समय पर इलाज ना लेना कई तरह के रोगों का कारण बन रहा है. यहां हम फिस्टुला के कारण, जांच के तरीके और उपचार के बारे में जानें उससे पहले यह समझ लेना आवश्यक है कि पाइल्स, फिशर और फिस्टुला में क्या अंतर है. पाइल्स को बवासीर भी कहा जाता है, इसमें गुदा के टर्मिनल हिस्से में नसों में सूजन आ जाती है. जबकि फिशर में गुदा के चारों ओर एक कट लग जाता है या दरार बन जाती है जो बहुत दर्द देता है. वहीं फिस्टुला गुदा के मध्य भाग में गुदा ग्रंथियां में संक्रमण होने से जुड़ा है, जिससे गुदा पर फोड़ा हो जाता है, जिससे मवाद निकलने लगता है. फिस्टुला संक्रमित ग्रंथि को फोड़ा से जोड़ने वाला मार्ग है.

एनल फिस्टुला के इलाज में लापरवाही बरतने पर कालांतर में गुदा (एनस) में फोड़ा और सूजन, आतों में विकार या आंत में कैंसर, रेक्टम (मलाशय) की तपेदिक जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं.

फिस्टुला के कारण
– आधुनिक जीवनशैली में अनियमित खान-पान, सुपाच्य भोजन कम लेना, जरूरत से ज्यादा बैठा रहना, व्यायाम या पैदल चलने से परहेज.
– कम मात्रा में पानी पीना.
– गुदा ग्रंथियां बंद होना या गुदा में फोड़े होना इसका प्रमुख कारण है.
– कई बार आंत की सूजन संबंधी बीमारी, कैंसर के उपचार के दौरान रेडिएशन से, ट्रॉमा, यौन संचारित रोग, टीबी, डायवर्टीकुलिटिस जो एक ऐसी बीमारी है जिसमें बड़ी आंत में छोटी छोटी थैलियां बन जाती हैं और सूजन हो जाती है, यह भी फिस्टुला के कारण हो सकते हैं.

फिस्टुला के प्रमुख लक्षण

गुदा के आसपास खुजली होना, बैठने के दौरान बेचेनी होना, गुदा के आसपास दर्द और सूजन, शौच करने में परेशानी या दर्द, मलद्वार से रक्तस्नाव, गुदा में बार-बार फोड़े होना, बुखार आना, ठंड लगना, थकान होना, कब्ज होना, गुदा के पास से बदबूदार और खून वाली पस निकलना, बार-बार पस निकलने के कारण गुदा के आसपास की त्वचा में जलन और त्वचा का लाल पड़ना आदि प्रमुख लक्षण हैं.

उपचार
डिजिटल गुदा परीक्षण, फिस्टुलोग्राम और फिस्टुला के मार्ग को देखने के लिये एमआरआई प्रमुख रूप से फिस्टुला की जांच के प्रमुख तरीके हैं. फिस्टुला का इलाज शुरुआती दौर में दवाओं से किया जा सकता है लेकिन स्थिति बिगड़ने पर सर्जरी ही इसका इलाज है. यदि किसी रोगी को फिस्टुला प्रथम चरण में है तो रोग को फाइबर और पोषण से भरपूर आहार और बहुत सारा पानी पीने से ठीक किया जा सकता है. ऐसा आहार प्राकृतिक रूप से फिस्टुला को शुरुआत में दूर करने में मदद करता है. रोगी को अतिरिक्त एंटीबायोटिक्स या मलहम के जरिए भी उपचार दिया जाता है. लेकिन स्थिति ज्यादा खराब होने पर सर्जरी आवश्यक हो जाती है. फिस्टुला सर्जरी दो प्रकार से हो सकती है इसमें पारंपरिक खुली सर्जरी और लेजर सर्जरी प्रमुख है.

फिस्टुला सर्जरी:

1- परंपरागत सर्जरी
फिस्टुला की परंपरागत सर्जरी को फिस्टुलेक्टॅमी कहा जाता है. इसमें सर्जरी के जरिये भीतरी मार्ग से लेकर बाहरी मार्ग तक की सम्पूर्ण फिस्टुला को निकाला जाता है. इसमें आम तौर पर टांके नहीं लगाये जाते और जख्म को धीरे-धीरे, प्राकृतिक तरीके से भरने दिया जाता है. पर इस उपचार विधि में दर्द अधिक होता है और उपचार के असफल होने, खून का बहाव अधिक होने की संभावना रहती है. इसमें फिस्टुला के अंदर के मार्ग और बगल के टांके आम तौर पर हट जाते हैं जिससे दोबारा फिस्टुला हो सकता है.

2- लेजर सर्जरी
यह आधुनिक उपचार का तरीका है. इसमें दर्द कम होता है, खून का बहाव कम होता है, टांके लगाने की जरूरत नहीं होती. इसमें संक्रमण का जोखिम कम होता है. इसमें रिकवरी जल्दी होती है. दुबारा फिस्टुला होने का जोखिम कम रहता है.

: डॉ. सिद्धार्थ गुप्ता, जनरल सर्जन

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