कोरोना वैक्सीन से जुड़े वो 10 सवाल, जिनका जवाब आपको जानना जरूरी है

DR Narendra Kumar Arora

क्या कोरोना वैक्सीन से प्रजनन क्षमता पर कोई नकारात्मक असर पड़ता है? कोरोना वैक्सीन की दूसरी डोज क्या है? जिस कंपनी की वैक्सीन की पहली डोज ली क्या दूसरी भी उसी की लेनी जरूरी है? टीका लगवाने पर बुखार ना आए तो क्या वैक्सीन असरकारक नहीं होगी? ऐसे कई सवाल हैं जो आपके और हमारे मन में हैं, कई शंकाएं भी हैं. जिससे कई लोग वैक्सीन से दूरी भी बनाए हुए हैं. ऐसे में The National Technical Advisory Group on Immunization in India (NTAGI) में कोविड-19 कार्य समूह के अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र कुमार अरोड़ा से जानते हैं उन 10 सवालों के जवाब जो हम सबके लिए जानने जरूरी हैं.


सवाल 1. क्या वैक्सीन से प्रजनन क्षमता पर कोई असर पड़ता है?
जवाब. जब पोलियो वैक्सीन आई थी और भारत तथा दुनिया के अन्य भागों में दी जा रही थी, तब उस समय भी ऐसी अफवाह फैली थी। उस समय भी यह गलतफहमी पैदा की गई थी कि जिन बच्चों को पोलियो वैक्सीन दी जा रही है, आगे चलकर उन बच्चों की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस तरह की गलत सूचना एंटी-वैक्सीन लॉबी फैलाती है। हमें यह जानना चाहिये कि सभी वैक्सीनों को कड़े वैज्ञानिक अनुसंधान से गुजरना पड़ता है। किसी भी वैक्सीन में इस तरह का कोई बुरा असर नहीं होता। मैं सबको पूरी तरह आश्वस्त करना चाहता हूं कि इस तरह का कुप्रचार लोगों में गलतफहमी पैदा करता है। हमारा मुख्य ध्यान खुद को कोरोना वायरस से बचाना है, अपने परिवार और समाज को बचाना है। लिहाजा, सबको आगे बढ़कर टीका लगवाना चाहिये।


सवाल 2. नई कोविड वैक्सीन को लेकर भारत में आगे की तैयारी क्या है?

जवाब. हमें जल्द ही जायडस कैडिला की दुनिया की पहली डीएनए-प्लासमिड वैक्सीन मिल जायेगी, जो भारत-निर्मित है। हमें जो अन्य वैक्सीनें जल्द मिलने की उम्मीद है, उनमें बायोलॉजिकल-ई की प्रोटीन सब-यूनिट वैक्सीन शामिल है। इन वैक्सीनों का परीक्षण काफी उत्साहवर्धक रहा है। उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि यह वैक्सीन सितंबर तक उपलब्ध हो जायेगी। भारतीय एम-आरएनए वैक्सीन को 2-8 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रखा जा सकता है, वह भी सितंबर तक मिल जायेगी। दो अन्य वैक्सीनें सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की नोवावैक्स और जॉनसन-एंड-जॉनसन भी जल्द मिलने की संभावना है। जुलाई के तीसरे सप्ताह तक भारत बायोटेक और एसआईआई की उत्पादन क्षमता में भी भारी इजाफा हो जायेगा।इससे देश में वैक्सीन की आपूर्ति में बढ़ोतरी होगी। अगस्त तक हम उम्मीद करते हैं कि हम एक महीने में 30-35 करोड़ डोज हासिल करने लगेंगे।” डॉ. अरोड़ा ने कहा कि इस तरह हम एक दिन में एक करोड़ लोगों को टीका लगाने में सक्षम हो जायेंगे।


सवाल 3. नई वैक्सीन्स कितनी असरदार होंगी?

जवाब. जब हम कहते हैं कि अमुक वैक्सीन 80 प्रतिशत असरदार है, तो इसका मतलब यह है कि वैक्सीन कोविड-19 रोग की संभावना को 80 प्रतिशत कम कर देती है। संक्रमण और रोग में फर्क होता है। अगर किसी व्यक्ति को कोविड का संक्रमण है, लेकिन कोई लक्षण नहीं हैं, तो वह व्यक्ति सिर्फ संक्रमित है। बहरहाल, यदि व्यक्ति में संक्रमण के कारण लक्षण भी नजर आ रहे हैं, तो वह व्यक्ति कोविड रोग से ग्रस्त माना जायेगा। दुनिया की हर वैक्सीन कोविड रोग से बचाती हैं। टीका लगवाने के बाद गंभीर रूप से बीमार होने की बहुत कम संभावना होती है; जबकि मृत्यु की संभावना नगण्य हो जाती है। अगर वैक्सीन की ताकत 80 प्रतिशत है, तब टीका लगवाने वाले 20 प्रतिशत लोगों को हल्का कोविड हो सकता है। भारत में जो वैक्सीनें उपलब्ध हैं, वे कोरोना वायरस के फैलाव को कम करने में सक्षम हैं। अगर 60 से 70 प्रतिशत लोगों को टीके लगा दिये जायें, तो वायरस के फैलाव को रोका जा सकता है।सरकार ने बुजुर्गों को टीके लगाने से कोविड टीकाकरण अभियान की शुरूआत की थी, ताकि सबसे अधिक जोखिम वाली आबादी को पहले टीके लग जायें। इस तरह मृत्यु की संभावना कम की गई और स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ भी कम हुआ।


सवाल 4. कोविड वैक्सीन के बारे में बहुत गलतफहमियां हैं। क्या आप उनका निराकरण करेंगे?

जवाब. हाल में, मैं हरियाणा और उत्तरप्रदेश के सफर पर था। मैंने इन राज्यों के शहरी और ग्रामीण इलाकों के लोगों से बात की, ताकि वैक्सीन के बारे में हिचक को समझ सकूं। ग्रामीण इलाकों के ज्यादातर लोग कोविड को गंभीरता से नहीं लेते और वे इसे सामान्य बुखार ही समझते हैं। लोगों को यह समझने की जरूरत है कि कोविड भले कई मामलों में हल्का-फुल्का हो, लेकिन जब वह गंभीर रूप ले लेता है, तो उससे जान भी जा सकती है, आर्थिक बोझ तो पड़ता ही है।यह बहुत उत्साहजनक बात है कि हम टीके के जरिये कोविड से खुद को बचा सकते हैं। हम सब यह मजबूती से मानते हैं कि भारत में उपलब्ध कोविड-19 वैक्सीनें पूरी तरह सुरक्षित हैं। मैं सबको आश्वस्त करता हूं कि कि सभी वैक्सीनों का कड़ा परीक्षण किया गया है, जिसमें क्लीनिकल ट्रायल शामिल हैं। इन परीक्षणों को पूरी दुनिया में मान्यता प्राप्त है।जहां तक टीके के बुरे असर (साइड-इफेक्ट) का सवाल है, तो सभी वैक्सीनों में हल्का-फुल्का खराब असर पड़ता है। इसमें हल्का बुखार, थकान, सूई लगाने वाली जगह पर दर्ज आदि, जो एक-दो दिन में ठीक हो जाता है। टीकों का कोई गंभीर बुरा असर नहीं होता।जब बच्चों को नियमित टीके दिये जाते हैं, तो उन्हें भी बुखार, सूजन आदि जैसे हल्के-फुल्के साइड इफेक्ट्स होते हैं। परिवार के बड़ों को पता होता है कि वैक्सीन बच्चों के लिये अच्छे हैं, भले उनका कुछ बुरा असर शुरू में होता हो। इसी तरह बड़ों को इस वक्त भी यह समझना चाहिये कि कोविड वैक्सीन हमारे परिवार और हमारे समाज के लिये जरूरी है। लिहाजा, हल्का-फुल्का बुरा असर हमें रोकने न पाये।


सवाल 5. क्या टीका लगवान के बाद बुखार नहीं आया, तो मतलब वैक्सीन काम नहीं कर रही?

जवाब. कोविड टीका लगवाने के बाद ज्यादातर लोगों में कोई बुरा असर नजर नहीं आता, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि वैक्सीन असरदार नहीं है। सिर्फ 20 से 30 प्रतिशत लोगों को टीका लगवाने के बाद बुखार आ सकता है। कुछ लोगों को पहली डोज लेने के बाद बुखार आ जाता है और दूसरी डोज के बाद कुछ नहीं होता। इसी तरह कुछ लोगों को पहली डोज के बाद कुछ नहीं होता, लेकिन दूसरी डोज के बाद बुखार आ जाता है। यह व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है और इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ कहना खासा मुश्किल है।


सवाल 6. दोनों खुराक लगने के बाद भी संक्रमण हो गया जिससे वैक्सीन पर सवाल उठाना कितना जायज है?

जवाब. कुछ ऐसे मामले भी सामने आये हैं, जहां लोगों को दोनों खुराकें लगवाने के बाद भी कोविड-19 का संक्रमण हो गया। इसलिये कुछ लोग वैक्सीन के असरदार होने पर सवाल उठा रहे हैं। वैक्सीन की दोनों खुराकें लेने के बाद भी संक्रमण हो सकता है। लेकिन ऐसे मामलों में रोग निश्चित रूप से हल्का होगा और गंभीर रूप से बीमार होने की संभावना लगभग नहीं होगी। इसके अलावा, ऐसी स्थिति से बचने के लिये लोगों को आज भी कहा जाता है कि टीका लगवाने के बाद भी कोविड उपयुक्त व्यवहार करें। लोग वायरस फैला सकते हैं, जिसका मतलब है कि वायरस आपके जरिये आपके परिवार वालों और दूसरों तक फैल सकता है। अगर 45 साल के ऊपर के लोगों को टीका न लगा होता, तब तो मृत्यु दर और अस्पतालों पर दबाव की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। अब दूसरी लहर समाप्ति की ओर है। इसका श्रेय टीकाकरण को ही जाता है।


सवाल 7. शरीर में एंटी-बॉडीज कब तक कायम रहती हैं? क्या कुछ समय बाद बूस्टर डोज लेनी होगी?

जवाब. टीका लगवाने के बाद शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है, जिसका पता निश्चित रूप से एंटी-बॉडीज से लग जाता है। एंटी-बॉडीज का पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा न दिखाई देने वाली रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित होती है। इसे टी-सेल्स के रूप में जाना जाता है, जिनके पास याद रखने की ताकत होती है। आगे जब भी वायरस शरीर में घुसने की कोशिश करता है, तो पूरा शरीर चौकस हो जाता है और उसके खिलाफ कार्रवाई शुरू कर देता है। लिहाजा, शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता का एकमात्र सबूत एंटी-बॉडी नहीं है। इसलिये टीका लगवाने के बाद एंटी-बॉडी टेस्ट कराने की जरूरत नहीं है। इस पर चिंता करके अपनी नींद ह करने का भी कोई मतलब नहीं है। दूसरी बात यह कि कोविड-19 एक नया रोग है, जो अभी महज डेढ़ साल पहले सामने आया है। वैक्सीन को आये हुये भी छह महीने ही हुये हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि अन्य वैक्सीनों की तरह ही, यहां भी रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम से कम छह महीने से एक साल तक कायम रहेगी। समय बीतने के साथ कोविड-19 के बारे में हमारी समझ में भी इजाफा होगा। इसके अलावा, टी-सेल्स जैसे कुछ घटक हैं, जिनकी नाप-जोख नहीं हो सकती। यह देखा जाना है कि टीका लगवाने के बाद लोग कितने समय तक गंभीर रूप से बीमार होने और मृत्यु से बचे रहते हैं। लेकिन अभी तो टीके लगवाने वाले सभी लोग छह महीने से एक साल तक तो सुरक्षित हैं।


सवाल 8. क्या पहली डोज जिस कंपनी की ली, दूसरी भी उसी कंपनी की लेना जरूरी है, और भविष्य में बूस्टर डोज लेनी पड़ी तो?

जवाब. कंपनियों के बजाय हम प्लेटफॉर्म की बात करते हैं। मानव इतिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक ही रोग के लिये वैक्सीन बनाने में अलग-अलग प्रक्रियाओं और प्लेटफार्मों का इस्तेमाल किया गया हो। इन वैक्सीनों की निर्माण प्रक्रिया अलग-अलग है, इसलिये शरीर पर भी उनका असर एक सा नहीं होगा।अलग-अलग किस्म की वैक्सीन की दो डोज लेने की प्रक्रिया या बूस्टर डोज के तौर पर कोई दूसरी वैक्सीन लेने को पारस्परिक अदला-बदली कहते हैं। ऐसा किया जा सकता है या नहीं, यह निश्चित रूप से महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक सवाल है। इसका जवाब खोजने का कम चल रहा है। हम ऐसे देशों में शामिल हैं, जहां अलग-अलग तरह की कोविड-19 वैक्सीनें दी जा रही हैं। इस तरह की पारस्परिक अदला-बदली को तीन कारणों से स्वीकार किया जा सकता है या उसे मान्यता दी जा सकती हैः 1) रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर करने या बढ़ाने के लिये, 2) इससे टीके की आपूर्ति आसान हो जाती है, 3) सुरक्षा सुनिश्चित होती है। लेकिन यह पारस्परिक अदला-बदली का आग्रह इसलिये नहीं होना चाहिये कि टीकों की कमी आ गई है, क्योंकि टीकाकरण शुद्ध रूप से वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत आता है।


सवाल 9. कुछ देशों में वैक्सीन के आपसी मिलान पर अनुसंधान हो रहा है। क्या भारत में भी ऐसा कोई अनुसंधान किया जा रहा है?

जवाब. इस तरह का अनुसंधान जरूरी है और भारत में भी जल्द ऐसे अनुसंधानों को शुरू करने के कदम उठाये जा रहे हैं। यह चंद हफ्तो में शुरू हो जायेगा।


सवाल 10. क्या बच्चों के टीकाकरण पर अध्ययन चल रहा है? कब तक बच्चों का टीका आने की आशा करें?

जवाब. दो से 18 वर्ष के बच्चों पर कोवैक्सीन का परीक्षण शुरू हो गया है। बच्चों पर परीक्षण देश के कई केंद्रों में चल रहा है। इसके नतीजे इस साल सितंबर से अक्टूबर तक हमारे पास आ जायेंगे। बच्चों को भी संक्रमण हो सकता है, लेकिन वे गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़ते। बहरहाल, बच्चों से वायरस दूसरों तक पहुंच सकता है। लिहाजा, बच्चों को भी टीका लगाया जाना चाहिये।

(Publish date- 25 June 2021)

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