कोलोरेक्टल कैंसर बड़ी आंत (को-लोन) में शुरू होता है। इस कैंसर की शुरुआत बड़ी आंत की दीवार के सबसे भीतरी परत में होती है। ज्यादातर मामलों में कोलोरेक्टल कैंसर छोटे पॉलीप्स (छोटी सूजन) से शुरू होते हैं जो पॉलीप्स कोशिकाओं का एक समूह होते हैं। इनमें से कुछ पॉलीप्स कैंसर में विकसित हो जाते हैं। हालांकि सभी पॉलीप्स कैंसर में विकसित नहीं होते हैं। पॉलीप के कैंसर में विकसित होने की संभावना पॉलीप्स के प्रकार, माप और संख्या पर निर्भर करती है। यह कैंसर पहले बड़ी आंत की दीवार में, फिर आसपास के लिंफ नोड्स में और फिर पूरे शरीर में फैलता है।
अगर कोलोरेक्टल कैंसर का समय पर पता लग जाए और उचित उपचार किया जाए तो इसका इलाज संभव है। कोलन कैंसर को कभी-कभी कोलोरेक्टल कैंसर भी कहा जाता है। कभी-कभी कोशिका विभाजन के दौरान एक स्वस्थ कोशिका के डीएनए में बदलाव आ जाता है। इससे उस कोशिका में अनियंत्रित विकास होने लगता है और कैंसर बनता है।
यह कितना घातक है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में यह तीसरा सबसे आम कैंसर है। कोलोरेक्टल कैंसर 20 में से 1 को होता है। प्रतिवर्ष दुनिया के 18 लाख लोग इससे पीड़ित होते हैं। प्रति वर्ष वैश्विक स्तर पर करीब 8 लाख 62 हजार मौतों का कारण बनता है।
पॉलीप्स दो प्रकार के होते हैं:
1. एडिनोमेटस पॉलीप (एडिनोमास): इनके कैंसर में विकसित होने की संभावना रहती है।
2. हाइपरप्लास्टिक और इन्फ्लेमेटरी पॉलीप्स: इनकी कैंसर में विकसित होने की संभावना सामान्य तौर पर ना के बराबर होती है।
उपचार:
कोलन कैंसर को नियंत्रित करने में मदद के लिए करने के लिए कई उपचार उपलब्ध हैं। सर्जरी, दवा का उपचार जैसे कि कीमोथेरेपी, टारगेट थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी शामिल हैं। इससे बचने के लिए इसके जोखिम कारकों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षण:
दस्त, कब्ज, बार बार शौचालय जाना, मल त्यागने के बाद भी दोबारा शौचालय जाने की इच्छा महसूस होना, मल में रक्त आना,
पेट में दर्द, पेट फूला हुआ महसूस होना, थकावट, उल्टी, अत्यधिक वजन घटना इसके लक्षण हैं। इसके पेट में या पिछले हिस्से में गांठ महसूस होना, पुरुषों में या रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में आयरन की अत्यधिक कमी होना इसके प्रमुख लक्षण हैं।
कोलोरेक्टल कैंसर के जोखिम कारक:
– उम्र बढने के साथ यह जोखिम बढता है, बुजुर्गों में इसकी संभावना ज्यादा रहती है।
– पशुओं से मिलने वाला प्रोटीन जब आहार में बहुत ज़्यादा खाया जाए तो इसकी संभावना बढती है।
– संतृप्त वसा से भरपूर आहार ज्यादा लेना क्योंकि इसमें फैटी एसिड बहुत अधिक मात्रा में होता है।
– फाइबर से युक्त भेजन की मात्रा बहुत लेना। बहुत ज्यादा कैलोरी वाला आहार लेना।
– यह अनुवांशिक भी हो सकता है, यदि परिवार में पहले किसी को रहा हो तो संभावनाएं बढ जाती है।
– अल्सरेटिव कोलाइटिस से ग्रस्त मरीज में इसकी संभावनाएं बढ़ जाती हैं. यह आंत की बीमारी है जिसमें बड़ी आंत में लम्बे समय के लिए सूजन और जलन रहती है।
– शराब और तम्बाकू का अधिक मात्रा में सेवन करना।
– ऐसी महिलाएं जिनको स्तन कैंसर, अंडाशय कैंसर या गर्भाशय कैंसर हो चुका हो उनमें भी इसकी संभावनाएं रहती है।
– मलाशय में पॉलीप्स की मौजूदगी जिनके अनुपचारित रहने पर अंततः कैंसर की बीमारी बन सकती है।
– अधिक वजन या मोटापा, सुस्त दिनचर्या भी इसके जोखिम कारकों में शामिल है।