बेहरेपन के इलाज में कारगर साबित हो रही है कोक्लियर इम्प्लांट सर्जरी

बेहरेपन की समस्या आम समस्या हो चली है। ऐसे में कोक्लियर इम्प्लांट सर्जरी के जरिए बेहरेपन की बीमारी का इलाज किया जाता है। कोक्लियर इंप्लांट एक छोटी सी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जिसके भीतरी और बाहरी दोनों भाग होते हैं। यह डिवाइस कोक्लेयर नर्व को एक्टिव करती है जो सुनने के लिए उत्तरदायी है।

कोक्लियर कान के परदे के पीछे लगा कान का एक अंग होता है, जो आवाज की ध्वनि को दिमाग तक पहुंचाता है। इसके बाद व्यक्ति आवाज सुनकर उसे समझने की क्षमता रखता है। इस सर्जरी के माध्यम से कान के पीछे एक मशीन लगाई जाती है, जिसे टांके लगाकर अंदर बंद कर दिया जाता है। इसके साथ ही कान के बाहर श्रवण यंत्र की तरह की एक छोटी मशीन लगाई जाती है जिसे आप जब चाहे उतार भी सकते हैं। हालांकि कोक्लियर इंप्लांट सर्जरी बेहतर सुनने में आपकी मदद कर सकती है। लेकिन यह आपके सुनने की क्षमता को ना तो वापस ला सकती है और ना ही सुनाई कम देने की प्रक्रिया को रोक सकती है। पर यह काफी हद तक आपके लिए मददगार हो सकती है।

 

कब की जाती है कोक्लियर इंप्लांट सर्जरी

1. जब आपके दोनों कानों में सुनने की क्षमता कम हो जाए।
2. सुनने के उपकरण भी आपको बेहतर सुनने में ज्यादा मदद नहीं कर पाएं।
3. सुनने के बाद भी शब्दों की या वाक्यों की स्पष्टता ना के बराबर हो।

 

सर्जरी की प्रक्रिया

कोक्लियर इंप्लांट सर्जरी में 2 से 4 घंटे का वक्त लग सकता है। यह सर्जरी सामान्य रूप से बेहोश करके की जाती है। सर्जन कान के पीछे स्थित मस्तूल की हड्डी को खोलने के लिए एक चीरा लगाते हैं। चेहरे की नस की पहचान की जाती है और कोक्लियर का उपयोग करने के लिए उनके बीच एक रास्ता बनाया जाता है। जिसके बाद इसमें इंप्लांट इलेक्ट्रोड्स को फिट किया जाता है। इसके बाद एक इलेक्ट्रोनिक डिवाइस जिसे रिसीवर कहते हैं, उसे कान के पीछे के हिस्से में चमड़ी के नीचे लगा दिया जाता है और चीरा बंद कर दिया जाता है।

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